पशु आहार में साइलेज का महत्त्व

साइलेज (Silage Feed)

पशुओ की तंदुरस्ती एवं उत्पादन मुख्यतः उन्हें देने वाले आहार पर ही निर्भर होता है। कौन से पशु को कब, कितना और किस तरह से आहार देना है, इसका गणित होता है की हम पशुओ की कीस शक्ती / क्षमता का उपयोग करना चाहते है । उदा: बैलो में खेती के लिए अथवा गायों मे दूध देने के लिए, आहार की मात्रा, गुणवत्ता और देने का समय यही मुख्य आधार है, जो किसान का लाभ निच्छित करते है। अधिकतर पशुपालक इसी समस्या से झुजते रहते है की उनके पशुओ को आवश्यक मात्रा मे बढ़िया चारा निरंतर कैसे मिलता रहे।

विशेषतः हमारे देश मे प्रति दिन की आवश्यकतानुसार चारा काट कर लाना, फिर से उसे छोटे छोटे टुकड़ो मे काटना और फिर पशुओ को देना, इसी पद्धति को पशुपालक आज भी अपनाये हुए है या यही मुख्य प्रचलित पद्धति है।

१) इस पद्धति से घास चारे की संपूर्ण फसल काटने मे एक महीने तक समय लग सकता है।

२) इस समय के दौरान जब चारा फसल खेत मे खड़ी हो तब हम उस जमीन का उपयोग नहीं कर सकते। फसल की अधिक समय तक खेत मे रखने से चारे मे मौजूद पोषक तत्वो में कमी आने की संभावना होती है।

३) रोज रोज खेतो मे जाना, चारा काटना और फिर पशुओ को देना बहुत ही मेहनत भरा और समयखाऊ काम है। किसी कारणवश चारा नहीं ला पाए या बहुत देर हो गई तो यह पशुओ के उत्पादन पर असर करता है।

इन सब झंझोटो से निजात पाने का एक ही उत्तम तरीका है की संपूर्ण चारा फसल मे जब “पोषणतत्व” एवं नमी योग्य मात्रा मे उपलब्ध हो तो संपूर्ण फसल को एक ही बार मे काट के भविष्य मे उपयोग हेतु सरंक्षित एवं संग्रहीत लेना, ऐसा करने से रोज रोज “चाराकटाई” पर होने वाला मजूरी खर्च काम कर सकते है। पशुओ को हर समय निर्धारित समय पर योग्य आहार दे सकते है और हा इस खाली जमीन का उपयोग कर सकते है।

इस हरे चारे को हवाबंद स्थिति मे “खमीरीकरण” (Aerobic Fermentation Process) प्रक्रिया द्वारा सुरक्षित रख सकते है। स्थानिक भाषा मे इसे “मुरघास” के नाम से भी जाना है। विश्व मे सायलेज ही ऐसा पशु आहार जो पशुओ को अधिक से अधिक मात्रा मे प्रोटीन, शक्ती एवं रेशे को उपलब्ध करता है ।

साइलेज (silage feed ) कैसे बनाते है ?

साइलेज बनाने की प्रक्रिया बहुत ही सरल है। गाय के बड़े पेट (रुमेन) मे होने वाली खमीरीकरण क्रिया से एकदम मिलती जुलती है। साइलेज को हम एक “पकापकाया आहार” भी कह सकते है। घास चारे की अधिकतर फसलों मे ६ -१० % मात्रा मे शक्कर के रूप मे घुलनशील कार्बोदिक पदार्थ मौजूद होते है। हवा की अनुपस्थिति में कार्बोदिक पदार्थ को खमीरीकरण की क्रिया द्वारा एसिटिक एसिड अथवा एसिटेट में परिवर्तित कर देते है। इस संपूर्ण प्रक्रिया मे सबसे महत्त्वपूर्ण हवा की अनुपस्थिति मे खमीरीकरण क्रिया का होना। हवा की उपस्थिति से जीवाणु एवं फूफूंद की वृद्धि होने से पूरा साइलेज खराब हो सकता है या बिगड़ सकता है।

घास चारे की फसल मे जब दाना भरना शुरू होता है तब फसल मे नमी की मात्रा करीब ६५ % होती है। फसल को काटकर सायलेज बनाने का यही सबसे योग्य समय होता है। सायलेज बनाने के हेतु फसल योग्य अवस्था मे है या नहीं जानने का एक तरीका है की फसल की कुछ पत्तिया तोड़ कर उन्हें हथेली पर मसलने से पत्तिया नरम / मुलायम महसूस होना तथा उसमे नमी का एहसास होना यह परीक्षण हम खेत मे जब फसल खड़ी हो तब भी कर सकते है। अब पूरी फसल २ दिनों मे पूरी काट लेना चाहिये, अगर कटी हुई फसल मे नमी कुछ अधिक मात्रा में लग रही है तो इसे हवा में १२ घंटे तक सुखाने हेतु छोड़ देना चाहिये।

चाफिंग चारे को कैसे संग्रह करे ?

अब यह छोटे छोटे टुकड़ो मे कटा हुआ चारा या तो जमीन के निचे सीमेंट से बने कमरे मे अथवा जमीन के उपर सीमेंट या धातु का टावर बना कर संग्रह कर सकते है। दूसरा तरीका यह भी है की साइलेज को हम पॉलीथिन के बड़े आकर वाले थैलो मे भी संग्रह कर सकते है। संग्रहण इस बात पर निर्भर करता है की हमें कितनी मात्रा का संग्रह करना है और निरंतर साइलेज उत्पादन करने का हमारा आयोजन क्या है, क्या साथ मे इस कार्य हेतु हम कितना धन लगा सकते है।

साइलेज बनाते समय उसमे कुछ मिला सकते है क्या ?

साइलेज मे बाहर से कुछ भी अतिरिक्त मिलाने की आवश्यकता नहीं है। अगर आपको ऐसी शंका हो की हमारी फसल मे घुलनशील कार्बोदिक पदार्थो की मात्रा काम है तो गुड़ या शिरा (molasses) मिला सकते है। अगर कार्बोदिक पदार्थ अधिक मात्रा में हो तो भी वह सायलेज की गुणवत्ता पर कोई अनुचित असर नहीं करते है। कुछ पशुपालक साइलेज (silage) में खनिज मिश्रण या यूरिया मिलते है परंतु यह बहुत उपयोगी नहीं होता होता है अंतः इनके उपयोग से बचना चाहिये।

साइलेज को ठोस या घनाकार में कैसे परिवर्तित करे?

घासचारे के साइलेज को हवाबंद वातावरण में सरंक्षित करना एक जटिल समस्या है। इसीलिये यह बहुत महत्वपूर्ण है की हम सायलेज परत दर परत (एक तह की ऊपर दूसरी तह जमाते जाना) भारी दबाव से जकड कर ठोस आकार में परिवर्तित करते जाए। अगर साइलेज अधिक मात्रा में हो तो मशीन अथवा ट्रेक्टर की मदत से भी इस काम को कर सकते है। हवाबंद स्थितिवाला वातावरण बनाने के लिए पूर्ण मशीन को पॉलीथिन के आवरण से ढकना जरुरी है।

साइलेज की सबसे उपर वाली परत या तह पर बडासा टायर रखकर फिर मशीन से दबाया जाये तो आवश्यक दबाव बना रहता है, इससे सायलेज ठोस रूप में बदलने के साथ साथ हवा भी कम से कम रहने में सहायता होती है। जिन किसान भाइयों के पास “साइलेज संग्रह” हेतु जगह की कमी है, तो वे बाजार में उपलब्ध ५० किलो ग्रामसे १ टन तक के थैले मिलते है उनका उपयोग कर सकते है। फिर भी छोटे आकार के थैले परिवहन में सुविधजनक होते है।

साइलेज कितने समय में तयार होता है ?

घासचारे को साइलेज में परिवर्तन की प्रक्रिया पूर्ण होने के लिए एक महीने का समय पर्याप्त है। सायलेज से मीठी सुंगध आने लगे तो समझ लो की प्रक्रिया पूर्ण हो गई है याने साइलेज तैयार हो गया है।

साइलेज की गुणवत्ता को कैसे परखा जाए ?

साइलेज की गुणवत्ता जांचने के लिए उसमे मौजूद पोषक तत्वों का जानना जरुरी है। साथ साथ साइलेज की प्राकृतिक अवस्था तथा जीवाणु परीक्षण करना भी महत्वपूर्ण है। अच्छे एवं गुणवत्तायुक्त सायलेज से मीठी सुगंध आएगी। जबकि बिगड़े या ख़राब हुवे साइलेज से दुर्गंध या बदबू आयेगी।

साइलेज में जब फूफूंद लग जाती है तो साइलेज का रंग काला पड जाता है। किसी विशेषज्ञ द्वारा साइलेज का परीक्षण करवाना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि साइलेज में उपलब्ध पोषक मुख्यो को जानने से आप अपने पशु को कब, कितना और कोनसा आहार देना है यह सुनिच्छित करके दूध उत्पादन मूल्य से कम से कम कर सकते है। साइलेज का जैविक विश्लेषण करने से हम आश्वस्त हो जाते है की सायलेज घातक जीवाणु जैसे की लिस्टेरिया / क्लोस्ट्रोडिया से मुक्त है।

कौन सी घास चारा फसले साइलेज बनाने हेतु योग्य है?

कोई भी चारे की फसल जिसमे दाने के साथ साथ ७ -१० % घुलनशील कार्बोदिक पदार्थ हो तो सायलेज बनाने हेतु उपयुक्त है। मकई, जुवार तथा हायब्रिड नेपियर के चारे से उत्तम सायलेज बनता है। शराब निर्माण से निकला जौ, सागभाजी एवं फलो के छिलको को भी साइलेज में मिला सकते है।

बर्बाद / ख़राब हुवी फसल से साइलेज बनाना

किसी भी कुदरती प्रकोप से अगर फसल बर्बाद हो गई है, तो वह भी साइलेज (Silage Feed) बनाने के काम आ सकती है। फसलों में उपलब्ध नमी पोषक तत्व एवं फसल की उम्र पर सायलेज की गुणवत्ता निर्भर करती है।

साइलेज मात्रा (%)
सूखा पदार्थ (ड्राई मटर) २३.५ – २५.० %
कच्चा प्रोटीन (Crude protein) ६ .५ – ८ .० %
कच्चा रेशा (Crude Fibre) २३ .५ – २५ .० %
NDF ४९.३ %
ADF २५ -२७ %
इतर २ .५ -२ .६ %
Ash ४.८ %
सकल ऊर्जा (Gross Energy)
१८.९ MJ / किलोग्राम

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डॉ. सुहास शुक्ला

पशुचिकित्सक, गुजरात