लिंग पृथक्करण वीर्य : प्रजनन के क्षेत्र में विज्ञान का अनुसंधान

लिंग पृथक्करण वीर्य  

भारत में कृषि समृद्धि का आधार पशुपालन है, लेकिन घटती जमीन और बढ़ते मशीनीकरण के कारण पशुओं की उपयोगिता खत्म हो गई है, जो दुधारु पशु है, उन्हीं का पालन पोषण होता है और बाकी नर पशुओं को सड़कों पर खुला छोड़ देते हैं। बैल और साडों की बढ़ती संख्या भी परेशानी का सबब बन रही है क्योंकि गावों में आवारा घूमते साँड फसलों को चौपट कर देते हैं। शहरों में सड़कों पर घूमते साँडों की वजह से अक्सर बड़ी दुर्घटनाएँ तक हो जाती हैं। गौहत्या पर प्रतिबंध को देखते हुये लिंग चयन विधि को अपनाते हुये राज्य सरकार आवारा साडों की संख्या कम करके यह सुनिश्चित करे कि वे कभी पैदा न हों।

शुक्राणु पृथक्करण क्रोमोसोम को चुनने की एक विधि है कि किस प्रकार के शुक्राणु क्रोमोसोम अंडाणु को निषेचित करते हैं। शुक्राणु में दो प्रकार के क्रोमोसोम एक्स (x) और वाई (y) पाये जाते है। जब नर का वाई क्रोमोसोम धारक शुक्राणु मादा के अण्डे से मिलता है तो नर पशु का जन्म होता है। इसके विपरीत जब नर का एक्स क्रोमोसोम धारक शुक्राणु मादा के अण्डे से मिलता है तो मादा पशु का जन्म होता है। कई पारम्परिक तकनीकें जैसे सेंट्रीफ्यूजेशन या स्विम अप और नई तरह से लागू तकनीक जैसे सेंट्रीफ्यूजेशन या स्विम अप और नई तरह से लागू तकनीक जैसे फ्लो साइटोमेट्री द्वारा शुक्राणु पृथक्करण की जाती हैं। शुक्राणु पृथक्करण से मन चाहे लिंग (नर या मादा) के पशुओं का प्रजनन सम्भव हो गया है। इस विधि की सत्यता लगभग 90 प्रतिशत है।

इस तकनीक के माध्यम से उन शुक्राणु क्रोमोसोम को छाँटा जाता है जो सबसे अधिक स्वस्थ हो तथा उनमें विशिष्ट गुण पाया जाता हो जैसे कि एक्स और वाई क्रोमोसोम को उनके डी.एन.ए. (DNA) में भार के कारण उनका पृथककरण।

भारत में फिलहाल इस तकनीक का इस्तेमाल होल्सटीन फ्रीसियन और जर्सी नस्ल की गायों की संख्या बढ़ाने पर किया जाता है। अब इसका इस्तेमाल साहीवाल, हरियाणा, रेड सिंधी, राठी और गिर आदि देसी नस्ल की गायों की संख्या बढ़ाने में हो रहा है।

लिंग वीर्य के लाभ

  1. केवल मादा बछड़ों का उत्पादन करने से किसानों को उन संसाधनों को बचाने में मदद मिलती है जो अवांछित नर के साथ साझा किए जाते थे।
  2. अन्य किसानों को अधिशेष हीफर्स बेचने का अवसर।
  3. आनुवंशिक सुधार में बढ़ोतरी।
  4. झुंड की ताकत बढ़ाने का एक आर्थिक तरीका जिसमें बाहर से हीफर्स खरीदकर बीमारियों की रोकथाम में मदद मिलेगी।
  5. इसके प्रयोग से केवल बछियों का जन्म होता है। अतः दूध के उत्पादन में वृद्धि होती है और किसान को बछड़ों के लालन पालन पर बेकार का खर्च नहीं करना पड़ता।
  6. अधिक बछियों के जन्म से किसान के पास अधिक संख्या में दूध देने वाली गायें उपलब्ध रहेगी।

तकनीकी सीमाए

  1. लिंग पृथक्करण मशीन की उच्च लागत।
  2. कम पृथक्करण दक्षता और गति।
  3. लिंग पृथक्करण मशीनों को संचालित करने के लिए अत्यधिक कुशल व्यक्ति की आवश्यकता होती है।
  4. विद्युत प्रवाह के कारण शुक्राणु को नुकसान।
  5. लगभग 50 प्रतिशत शुक्राणु का नुकसान।
  6. छँटे हुए शुक्राणु की भंडारण के दौरान ठंड सहने की क्षमता कम हो जाती है।

कार्यान्वयन की सीमाए

  1. पारम्परिक वीर्य की तुलना में लिंग वीर्य में शुक्राणु की संख्या बहुत कम होती है। अतः लिंग पृथक्करण वीर्य में गर्भाधान दर पारंपरिक वीर्य की तुलना में 10—15 प्रतिशत कम है।
  2. लिंग पृथक्करण वाले वीर्य के साथ गर्भाधान करने के लिए कोई मानक संचालन प्रक्रिया नहीं है।
  3. लिंग पृथक्करण वीर्य की उच्च लागत (पारम्परिक वीर्य की लागत 30 रुपये जबकि लिंग पृथक्करण वीर्य की लागत 700-800 रुपये)।

सारांश

सभी पशुपालक दूध उत्पादन के लिये केवल मादा पशुओं के जन्म की कामना करते हैं क्योंकि नर पशु उनके व्यवसाय में कोई योगदान नहीं देते। ऐसी स्थिति में वीर्य के प्रयोग से किसान मादा पशुओं (गायों) का उत्पादन कर सकते हैं। वीर्य अब व्यापक रूप से उपलब्ध है और भारत में भी आयातित वीर्य का प्रयोग बेहतर बछिया प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है।


डॉ. राजेश कुमार

स्नातकोत्तर पशु चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान,
पी.जी.आई.वी.ई.आर, जयपुर