राष्ट्रीय गोकुल मिशन: दूसरे चरण में गांव-गांव जाकर किया जाएगा गाय-भैंस का कृत्रिम गर्भाधान

श्वेत क्रान्ति को प्रभावी रूप से लागू करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय गोकुल मिशन के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश के सभी जिलों में राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान योजना का दूसरा चरण 1 अगस्त, 20 से 31 मई, 21 तक चलाया जाएगा। इस परियोजना के तहत पशुपालकों को उनके घर-द्वार पर ही नि:शुल्क कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा प्रदान की जाएगी ताकि उच्च गुणवत्ता तथा उत्तम नस्ल की संतति प्राप्त करके दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी दर्ज की जा सके। राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान योजना के अंतर्गत प्रत्येक जि़ला के सभी पशुपालकों को प्रजनन योग्य गाय अथवा भैंस को उत्तम नस्ल के वीर्य तृणों की मदद से नि:शुल्क गर्भाधान की सुविधा उपलब्ध करवाई जाएगी। कृत्रिम गर्भाधान से पूर्व सभी दुधारू पशुओं को 12 अंकों के पशु आधार नंबर वाले यूआईडी टैग से चिन्हित करने के बाद आईएनएपीएच में पंजीकृत किया जाएगा। इस योजना में किए गए कृत्रिम गर्भाधान, गर्भ जांच एवं संतति के ब्यौरे की ऑनलाइन अपलोडिंग इसकी सियत है।

कृत्रिम गर्भाधान योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को उनके घर-द्वार पर दुधारू पशुओं के लिए बेहतर कृत्रिम गर्भाधान सेवा प्रदान कर, देसी मवेशियों की नस्ल में सुधार लाना है। इससे पशुओं में होने वाले रोगों को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी और वे कम बीमार पड़ेंगे। नस्ल सुधार के साथ मवेशियों के दूध उत्पादन में बढ़ोतरी होने से पशुपालकों की आय में वृद्धि होगी।

इस कार्यक्रम के अंतर्गत कृत्रिम गर्भाधान करने वाले तकनीशियन को 50 रुपए प्रति कृत्रिम गर्भाधान तथा 100 रुपए प्रति उत्पन्न संतति मानदेय प्रदान किया जाएगा। इस योजना का क्रियान्वयन तथा संचालन सीधे तौर पर संबंधित जि़लाधीश की देख-रेख में किया जाएगा। पशुपालकों की सुविधा हेतु कृत्रिम गर्भाधान करने वाले तकनीशियनों के नाम तथा फोन नंबर सार्वजनिक किए जाएंगे। पशुपालकों की जानकारी हेतु अलग-अलग माध्यमों द्वारा प्रचार एवं प्रसार करने की व्यवस्था भी की गई है।

ग्रामीण विकास, पंचायती राज, मत्स्य तथा पशु पालन मंत्री वीरेंद्र कंवर के अनुसार इस योजना के अंतर्गत प्रदेश भर में लगभग 13,84,400 प्रजनन योग्य गाय तथा भैंसों में नि:शुल्क कृत्रिम गर्भाधान का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। किसान को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए प्रदेश सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है। कंवर कहते हैं कि दूध का उत्पादन बढऩे से किसानों की आय में वृद्धि होगी और वे आर्थिक समृद्धि की राह पर अग्रसर होंगे। इसके अलावा प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को खेतों में गोबर से बनी खाद का उपयोग करने के लिए प्रेरित करने से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होगी।


Source: The article is extracted from Dairy Today Network, July 24, 2020.

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