ए – १ तथा ए – २ दूध का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव

दूध को सर्वोत्तम आहार माना गया है क्योंकि दूध में लगभग सभी पोषक तत्व अपनी उचित मात्रा में उपस्थित होते हैं। एक मनुष्य अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा बिना अनाज खाये केवल दूध पीकर गुजार सकता है। दूध ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्त्रोत है। साथ ही इसमें प्रोटीन, वसा, खनिज लवण और विटामिन भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में दूध को उसमे पाई जाने वाली प्रोटीन (बीटा केसीन) के आधार पर दो भागों में विभाजित कर दिया गया है। ए-1 बीटा केसीन युक्त दूध तथा ए-2 बीटा केसीन युक्त दूध। इस लेख में  ए – १ तथा ए – २ दूध का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव (A2 Milk Health Benefits) इसके बारे में बहुत ही महत्वपुर्ण जानकारी दी है।

ए – १ तथा ए – २ युक्त दूध 

दूध में करीब 85 प्रतिशत पानी होता है तथा शेष 15 प्रतिशत दूध में पाये जाने वाले सभी पोषक तत्व जैसे शर्करा, प्रोटीन, वसा, खनिज लवण और विटामिन होते हैं।दूध में बीटा केसीन नामक प्रोटीन सर्वाधिक पायी जाती है। जिसे ए-1 तथा ए-2 बीटा केसीन में विभाजित किया गया है। जो दूध में पाये जाने वाले प्रोटीन का 30 प्रतिशत होती है। ए-2 दूध वह दूध होता है जिसमें केवल ए-2 बीटा केसीन प्रोटीन पायी जाती है तथा ए-1 में केवल ए-1 बीटा केसीन प्रोटीन पायी जाती है।मुख्यतः ए-1 प्रोटीन संकर गाय तथा यूरोपियन नस्ल की गायों के दूध में पायी जाती है तथा ए-2 प्रोटीन भारतीय देशी गाय के दूध में पायी जाती है।

ए-१ तथा ए-२ बीटा केसीन युक्त दूध में क्या अंतर है ?

किसी भी प्रोटीन का निर्माण अमीनो अम्ल की एक लम्बी श्रृंखला से होता है। बीटा केसीन प्रोटीन की श्रृंखला 209 अमीनो अम्ल से बनी होती है। जिन गायों में ए-2 बीटा केसीन के जीन पाये जाते हैं उनमें केसीन प्रोटीन शृखंला का 67 वां अमीनो अम्ल “प्रोलीन” होता है जबकि ए-1 बीटा केसीन उत्पन्न करने वाली गायों में प्रोलीन के स्थान पर “हिस्टीडिन” होता है। प्रोटीन शृखंला में यह परिवर्तनएक अनुवांशिक परिवर्तन के कारण हुआ है।

ए-१ तथा ए-२ बीटा केसीन युक्त दूध की पहचान का तरीका 

दूध में पाये जाने वाल कुल प्रोटीन का 80 प्रतिशत भाग केसीन प्रोटीन होता है तथा शेष 20 प्रतिशत व्हे प्रोटीन होता है। इस 80 प्रतिशत प्रोटीन में से 30 प्रतिशत भाग बीटा केसीन प्रोटीन का होता है। प्राचीन काल में ही जब गायों को पालना भी शुरु नहीं किया गया था तभी से गायों के दूध में ए-2 बीटा केसीन का निर्माण होता आया है। परन्तु यूरोप की कुछ गायों की नस्लों में अनुवांशिक परिवर्तन होने के कारण ए-2 बीटा केसीन के गुण बदल गये जिसके फलस्वरुप ए-1 बीटा केसीन का निर्माण हुआ। मात्र गाय के दूध को देखकर यह नहीं बताया जा सकता कि दूध में ए-1 बीटा केसीन है अथवा ए-2 बीटा केसीन प्रोटीन लेि कन पीसीआर अर्थात् पोलिमरेज चैन रिएक्शन द्वारा दूध के सैम्पल से डीनए को अलग करके ए-1 तथा ए-2 प्रोब द्वारा इसकी पहचान आसानी से की जा सकती है परन्तु यह एक महंगी विधि है।

ए १ तथा ए २ दूध का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव

हालांकि यह एक विवादास्पद विषय है परन्तु पश्चिमी देशों में रहने वाले कुछ लोगों को ए-1 दूध हजम नहीं होता लेकिन वे ए-2 दूध को आसानी से पचा लेते हैं। ए-1 तथा ए-2 दूध को लके र सर्वप्रथम विवाद तब हुआ जब वर्ष 1993 में बोब इलियट ने बताया कि ए-1 दूध पीने से बच्चों को टाईप-प् मधुमेह हो सकता है क्योंकि जब ए-1 प्रोटीन टटू ता है तो बी.सी.एम.-7 प्रोटीन का निर्माण होता है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करता है। शिशुओं में अपरिपक्व आहार नाल के कारण बी.सी.एम.-7 प्रोटीन को अवशोषित कर सकता है जिससे टाईप-प् मधुमेह रोग हो सकता है। ए- 2 दूध में पाये जाने वाले प्रोलीन तथा बी.सी.एम.-7 के मध्य मजबूत जोड़ होता है जिससे बी.सी.एम.-7 प्रोटीन पशु की भोजन नली, मूत्र तथा रक्त तक नहीं पहुँच पाता वहीं दूसरी ओर ए-1 दूध में हिस्टीडिन व बी.सी.एम.-7 के मध्य कमजोर जोड़ होता है तथा यह प्रोटीन इसे पीने वाले की भोजन नली से आसानी से अवशोषित हो सकता है। बोहटन के एक विश्वविद्यालय ने पाया कि पाचन नली की कोशिकाओं में बी.सी.एम.-7 की अधिक मात्रा होने से स्नायु कोशिकाओं में एन्टी ऑक्सीडेंट की कमी हो जाती है जिससे सायजोफ्रेनिया तथा ओटिजम जैसे न्यूरोलॉजिकल डिऑर्डर (Neurological Disorder) आसानी से देखने को मिलते हैं।

निष्कर्ष

कुछ अनुसंधानों से प्रेरित होकर न्यूजीलैण्ड की एक कम्पनी ने ए-2 दूध से निर्मित “इनफेन्ट फूड” बाजार में बेचना शुरु कर दिया है। आजकल ए-2 बीटा केसीन युक्त दूध का बाजार बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। जयपुर में ही गिर गाय का दूध 90 से 100 रु प्रति लीटर बिक रहा है। अंत में यही कहा जा सकता है कि ए-2 बीटा केसीन युक्त दूध, ए-1 बीटा केसीन युक्त दूध के मुकाबले में स्वास्थ्य के लिए ज्यादा असरकार है। NBAGR (नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल एंड जेनेटिक रिसर्च) देश का सबसे बड़ा पशु अनुवांशिक शिक्षण संस्थान जिसे ICAR करनाल में स्थापित किया गया है। यह इस क्षेत्र में सन 2009 से कार्यरत है। इसकी पहली रिपोर्ट में यह कहा गया था कि भारतीय गायों में ए-2 की मौजूदगी 98 प्रतिशत तक है और कुछ नस्लों में यह सौ प्रतिशत भी देखि गयी है।

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डॉ. राजेश कुमार

स्नातकोत्तर पशु चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान,
पी.जी.आई.वी.ई.आर, जयपुर