भारत में गौहत्या कानून : सामाजिक एवं राजनितिक परिदृश्य

यह एक निर्विवाद सत्य है की भारत में गाय को कभी भी पशु नहीं माना गया है , अपितु इन्हें ब्रम्हाण्ड की जननी और मनुष्यों की माता माना जाता रहा है । वैदिक काल से ही गाय को आध्यात्मिक, सांस्कृतिक , सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और औषधीय कारणों से पोषित किया जाता रहा है । गाय का यूं तो पूरी दुनिया में ही काफी महत्व है, लेकिन भारत के संदर्भ में बात की जाए तो प्राचीन काल से यह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। चाहे वह दूध का मामला हो या फिर खेती के काम में आने वाले बैलों का। वैदिक काल में गायों की संख्यार व्यक्ति की समृद्धि का मानक हुआ करती थी। दुधारू पशु होने के कारण यह बहुत उपयोगी घरेलू पशु है। गाय न सिर्फ अपने जीवन में लोगों के लिए उपयोगी होती है, वरन मरने के बाद भी उसके शरीर का हर अंग काम आता है। गाय का चमड़ा, सींग, खुर से दैनिक जीवनोपयोगी सामान तैयार होता है। गाय की हड्डियों से तैयार खाद खेती के काम आती है। परन्तु इसका कतई मतलब यह नहीं है कि इन चीजो की प्रप्ति के लिए समय से पहले ही इसकी हत्या कर दी जाए और तर्क यह दिया जाए की इससे देश की अर्थव्यवस्था को फायदा हो रहा है। देश भर में गाय संरक्षण कानूनों के विश्लेष विश्लेषणों  में यह पाया गया कि:

  • मार्च 2017 तक भारत के 84 फीसदी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटीएस) में गौ हत्या पर प्रतिबंध लग गया गया है। इन इलाकों में देश की लगभग 99.38 फीसदी आबादी रहती है।
  • गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाए गए लगभग आधे राज्यों में कानून करीब 50 वर्ष पुराने हैं, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यकाल के दौरान अधिनियमित हुए हैं। जम्मू-कश्मीर और मणिपुर दो ऐसे राज्य हैं जहां गौ हत्या पर प्रतिबंध काफी पहले से है। दोनों राज्यों में भारत की आजादी से पहले 1932 और 1936 में तात्कालीन शासकों ने  गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाया था।
  • 1969 में कांग्रेस के विभाजन के बाद, 80 फीसदी से अधिक राज्यों में गौ हत्या पर प्रतिबंध का कानून जनता पार्टी या भारतीय जनता पार्टी की सरकार के तहत हुआ है।  पिछले 23 सालों में 11 में से 10 राज्यों में विशेष रुप से लागू किए गए गाय संरक्षण कानून अधिक सख्त हैं।
  • गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाए गए 77 फीसदी या  24 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में, यह अपराध संज्ञेय है, और इनमें से आधे से अधिक (13) राज्यों में यह गैर जमानती है। भारत के आपराधिक प्रक्रिया कोड के तहत, संज्ञेय अपराध गंभीर अपराध माने जाते हैं। जैसे कि हत्या, बलात्कार, दहेज से जुड़ी मौते और अपहरण। ऐसे मामलों में पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है और मैजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना भी जांच शुरू की जा सकती है।

भारत में गाय संरक्षण कानून

भारतीय राजनीति में गाय संरक्षण का लंबा इतिहास है। स्वतंत्रता के पूर्व आर्य समाज जैसे बड़े संगठनों से इसे भारी समर्थन प्राप्त हुआ था। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 48 कहता है, राज्य को आधुनिक और वैज्ञानिक तरीकों से कृषि एवं पशुपालन के प्रयासों को आगे बढ़ाना चाहिए और विशेष रूप से नस्लों में सुधार और उनके संरक्षण, गायों, बछड़ों तथा अन्य दुधारू पशुओं और मवेशियों के वध पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 में राज्यों को गायों और बछड़ों और अन्य दुश्मनों और मसौदे के मवेशियों की हत्या को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया गया है। 26 अक्टूबर 2005 को, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में भारत में विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अधिनियमित विरोधी गाय हत्या कानूनों की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। भारत में मवेशी वध को नियंत्रित करने वाले कानून राज्य से राज्य में काफी भिन्न होते हैं। “संरक्षण, सुरक्षा और पशु रोगों, पशु चिकित्सा प्रशिक्षण और अभ्यास की रोकथाम” संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची का प्रवेश 15 है, जिसका अर्थ है कि राज्य विधायिकाओं में वध और संरक्षण की रोकथाम को कानून बनाने के लिए विशेष शक्तियां हैं मवेशियों का कुछ राज्य मवेशियों की वध को “फिट-फॉर-स्लॉटर ” प्रमाणपत्र जैसे प्रतिबंधों के साथ अनुमति देते हैं, जिन्हें मवेशियों की उम्र और लिंग, निरंतर आर्थिक व्यवहार्यता आदि जैसे कारकों के आधार पर जारी किया जा सकता है। पिछले  कई साल के आकड़ो में केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ़ एनिमल हसबेंडरी के मुताबिक़, 1951 में 40 करोड़ की आबादी पर 15 करोड़ 53 लाख पशु थे। इसी तरह 1962 में 93 करोड़ की आबादी पर 20 करोड़ 45 लाख, 1977 में 19 करोड़ 47 लाख, 2003 में 18 करोड़ 51 लाख 80 हज़ार पशु बचे और 2009 में यह तादाद घटकर महज़ 16 करोड़ रह गई। बरस दर बरस इस संख्‍या में गिरावट दर्ज की जा रही है। राजधानी दिल्ली में 19.13 फ़ीसदी दुधारू पशु कम हुए हैं, जबकि गायों की दर 38.63 फ़ीसदी घटी है। फौरी तौर पर उपरोक्‍त आंकड़ों पर नज़रे डालने  भर से भी स्थिति स्‍पष्‍ट हो जाती है।

10 सितम्बर, 1952 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्री माधव सदाशिव गोलवलकर ‘श्री गुरू जी’ ने गौहत्या बन्दी कानून पर देश भर से एकत्रित किए गए लगभग 1 करोड से अधिक हस्ताक्षर तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद को सौंपा गया । 22 फरवरी, 1953 को आर्यसमाज की सार्वदेशिक प्रतिनिधि सभा में गौहत्या बन्दी पर प्रस्ताव पारित किया। 4 फरवरी, 1954 को स्वामी प्रभूदत्त ब्रह्मचारी जी की प्रधानता में एक अखिल भारतीय गौहत्या विरोधी समिति बनी और देश भर में जनांदोलन हुए। जनांदोलन के भारी दबाव में 5 सितम्बर, 1955 को उत्तरप्रदेश सरकार तथा 5 अक्टूबर, 1955 को बिहार सरकार द्वारा गौहत्या निवारण कानून पारित कर दिया गया. देश की सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष गौहत्या बन्दी का विषय आया तो सर्वोच्च न्यायालय की पूरी पीठ ने 23 अप्रैल, 1958 को अपना निर्णय गौहत्या बन्दी के पक्ष में दिया। गाय, बछडे की हत्या को सम्पूर्णतया बन्द करने की कार्यवाही को वैध माना गया साथ ही उपयोगी पशुओं की हत्या पर रोक स्वीकार कर ली गई परंतु अनुपयोगी पशुओं की हत्या पर छूट रही। गौहत्या बन्दी को लेकर वर्ष 1962 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेतृत्व में देश भर में पुन: आन्दोलन शुरू किया गया परंतु चीन द्वारा भारत से युद्ध छेड देने पर इस आन्दोलन को वापस लेना पडा परंतु 7 नवम्बर, 1966 देश की संसद के सामने लाखों लोगों द्वारा प्रदर्शन किया गया परंतु सरकार ने गौहत्या बन्दी को लेकर आन्दोलन का बलपूर्वक दमन कर दिया। गौहत्या बन्दी को लेकर पुरी के शंकराचार्य महाराज जी और आचार्य विनोबा भावे के अनशन को सरकारी आश्वासन देकर खत्म करा दिया गया। 1 जनवरी, 1994 से आन्ध्रप्रदेश के यांत्रिक कत्लखाने अलकबीर के विरुद्ध व्यापक जनांदोलन चला, परिणामत: 27 सितम्बर, 1994 को अलकबीर यांत्रिक कत्लखाने के मालिकों को उसे बन्द करने का फैसला करना पडा। 28 सितम्बर, 2009 से विश्व मंगल गौ – ग्राम यात्रा शुरू हुई जो कि 108 दिन में लगभग 28 हजार कि.मी. की दूरी तय कर 17 जनवरी, 2010 को नागपुर में सम्पन्न हुई। 31 जनवरी, 2010 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा पाटिल को देश भर के लगभग 10 करोड से अधिक हस्ताक्षरित ज्ञापन सौंपा गया जिसमें से लगभग 11 लाख मुस्लिम तथा लगभग 76 हजार ईसाई प्रतिनिधियों के भी हस्ताक्षर थे।  26 मई 2017 को, भारतीय केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने पूरे विश्व में पशु बाजारों में वध के लिए मवेशियों की बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध लगाया, जिसमें पशु विधियों की क्रूरता की रोकथाम के तहत हालांकि जुलाई 2017 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मवेशियों की बिक्री पर प्रतिबंध को निलंबित कर दिया ।

भारत में गौहत्या कानून का चरणवद्ध इतिहास

1950-1968: आजादी के बाद वर्ष 1950 में भारत के गणराज्य बनने के बाद गौ संरक्षण पर जोर था। लेकिन गौ हत्या प्रतिबंध को केवल राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत के रूप में शामिल किया गया था न कि बुनियादी अधिकार के रूप में , जैसा कि इसके समर्थकों ने मांग थी। फिर भी, कांग्रेस सरकारों ने 1969 तक कांग्रेस पार्टी के विभाजन के ठीक पहले, 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गौ हत्या प्रतिबंध कानूनों को लागू किया था। कानून तोड़ने वालों के लिए छह महीने से लेकर दो साल तक के कारावास का प्रावधान था। तीन साल के कारावास और 5,000 रुपए के जुर्माने के साथ मध्य प्रदेश में जम्मू-कश्मीर के बाद सबसे सख्त कानून था।

 1977-1979: आठ साल के अंतराल के बाद, गाय संरक्षण कानूनों में बदलाव तब हुआ जब 1977 में जनता पार्टी सत्ता में आई। उस समय जनता पार्टी में भारतीय जनसंघ (आज की भाजपा) भी शरीक थी। गोवा और दमन और दीव के केंद्र शासित प्रदेशों और हिमाचल प्रदेश में जनता पार्टी सरकार ने कानून लागू किए, जबकि आंध्र प्रदेश में यह काम कांग्रेस पार्टी ने किया था। महाराष्ट्र में भी बॉम्बे पशु संरक्षण अधिनियम 1954 को लागू करते हुए, कांग्रेस सरकार ने गाय संरक्षण कानून को मजबूत किया था।

 1994 से अब तक: 1990 के दशक के शुरू में देश भर में सांप्रदायिक संघर्ष में वृद्धि को देखते हुए दिल्ली कृषि पशु संरक्षण अधिनियम को फिर से लागू करने की घोषणा की गई। कानून में गौ हत्या पर पांच साल तक की जेल और 10,000 रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान था। इसे एक दंडनीय अपराध के रूप में देखा गया। यह जम्मू-कश्मीर के बाद सबसे सख्त कानून था। तब से गाय संरक्षण कानून लागू है और इसमें 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में संशोधन किया गया है। सिक्किम को छोड़कर इनमें से 10 राज्यों में सख्त दंड देने की सिफारिश की गई है । कानून में संशोधन के समय इन राज्यों में से 9 में भाजपा की सरकार थी।

वर्तमान परिदृश्य

पूर्णतः प्रतिबंधित गौ हत्या वाले राज्य  (11 राज्यों और दो केन्द्र प्रशासित राज्यों):  गो-हत्या पर पूरे प्रतिबंध के मायने हैं कि गाय, बछड़ा, बैल और सांड की हत्या पर रोक गुजरात, राजस्‍थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पंजाब, दिल्ली, चंडीगढ़ एवं भारत प्रशाशित कश्मीर में पुर्णतः प्रतिबन्ध है । गो-हत्या क़ानून के उल्लंघन पर सबसे कड़ी सज़ा भी इन्हीं राज्यों में तय की गई है. हरियाणा में सबसे ज़्यादा एक लाख रुपए का जुर्माना और 10 साल की जेल की सज़ा का प्रावधान है। वहीं महाराष्ट्र में गो-हत्या पर 10,000 रुपए का जुर्माना और पांच साल की जेल की सज़ा है।

गौहत्या पर आंशिक प्रतिबंध वाले राज्य (आठ राज्यों और चार केंद्र शासित): आंशिक प्रतिबंध के मायने हैं कि गाय और बछड़े की हत्या पर पूरा प्रतिबंध लेकिन बैल, सांड और भैंस को काटने और खाने की इजाज़त है. इसके लिए ज़रूरी है कि पशु को ‘फ़िट फ़ॉर स्लॉटर सर्टिफ़िकेट’ मिला हो. सर्टिफ़िकेट पशु की उम्र, काम करने की क्षमता और बच्चे पैदा करने की क्षमता देखकर दिया जाता है बिहार, आंध्र प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, गोवा और केंद्र शासित प्रदेशों – दमन और दीव, दादर और नागर हवेली, पांडिचेरी, अंडमान ओर निकोबार द्वीप समूह हैं। इन सभी राज्यों में सज़ा और जुर्माने पर रुख़ भी कुछ नरम है. जेल की सज़ा छह महीने से दो साल के बीच है जबकि जुर्माने की अधितकम रक़म सिर्फ़ 1,000 रुपए है ।

गौहत्या पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाने वाले राज्य (दस राज्य एवं एक केंद्र शासित):  यहां गाय, बछड़ा, बैल, सांड और भैंस का मांस खुले तौर पर बाज़ार में बिकता है और खाया जाता है। असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम, केरल, पश्चिम बंगाल और एक केंद्र शासित राज्य लक्षद्वीप। असम और पश्चिम बंगाल में जो क़ानून है उसके तहत उन्हीं पशुओं को काटा जा सकता है जिन्हें ‘फ़िट फॉर स्लॉटर सर्टिफ़िकेट’ मिला हो. ये उन्हीं पशुओं को दिया जा सकता है जिनकी उम्र 14 साल से ज़्यादा हो, या जो प्रजनन या काम करने के क़ाबिल ना रहे हों. मणिपुर में गौ हत्या के खिलाफ कानून महाराज चुराचंद सिंह के शासनकाल के दौरान 1936 में घोषित दरबार संकल्प पर आधारित है। हालांकि इस कानून की रूपरेखा अस्पष्ट है। इसके विपरीत, केरल और सिक्किम में गौ हत्या पर प्रतिबंध सबसे नरम है। केरल में  केरल पंचायत (वध घर और मांस स्टालों) नियम, 1964 और शहरी इलाकों में 1976 के सरकारी आदेश के अनुसार ग्रामीण इलाकों में गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाया गया है, लेकिन यदि पशु  की आयु 10 वर्ष है तो इसकी अनुमति दी जाती है। अपराधियों पर 1,000 रुपए का जुर्माना है। इसी तरह 2008 सिक्किम पुलिस अधिनियम केवल सार्वजनिक स्थानों पर ही गाय हत्या पर प्रतिबंध की अनुमति देता है। यहां केवल विनाशकारी वध के लिए मौद्रिक दंड का प्रावधान है।

गौहत्या को पूर्ण निषेध करने वाले राज्यों के कानून

छत्तीसगढ़ – छत्तीसगढ़ कृषिक पशु संरक्षण अधिनियम, 2004

धारा 4(1) – (क) कृषिक विहित पशुओं अर्थात गाय, बछिया, बछड़ा, पाड़ा, पड़िया, सांड़ या बैल व अन्य कृषिक पशुओं के वध का प्रतिरोध। (ख) कृषिक पशुओं का क्रय-विक्रय जिले के कलेक्टर से अनुज्ञा पत्र लेकर ही।

धारा 5 – किसी भी आयु की गाय, बछिया, पाड़ा, पड़िया और सांड़ या बैल व अन्य कृषिक पशुओं के वध का प्रतिषेध।

धारा 6 – वध के लिए गाय, बछड़ा, बछिया, पाड़ा, पड़िया, बैल और सांड़ का राज्य के अंदर अथवा राज्य के बाहर परिवहन का बिना जिले कलेक्टर की अनुमति के प्रतिषेध।

धारा 6(3) – (घ) किसी भी आयु की गाय, बछड़ा, बछिया, पाड़ा, पड़िया, बैल और सांड़ एवं दूध देने वाले अन्य कृषिक पशुओं के प्रति क्रूरता का प्रतिषेध।

धारा 8 – कृषिक पशुओं का मांस कब्जे में रखने का प्रतिषेध।

धारा 10 धारा 4(1) या धारा 6(1) या धारा 6(2), 6(3) – के उपबन्धों के उल्लंघन पर दोनों में से किसी भी भाँति के 7 वर्ष तक का कारावास तथा रु. 50,000/- तक का अर्थदंड, किन्तु कारावास 3 वर्ष से कम नहीं और अर्थदंड रु. 25,000/ से कम नहीं।

धारा 11 धारा 10 – में वर्णित धाराओं के अतिरिक्त अन्य धाराओं के उपबंधों के उल्लंघन पर दोनों में से किसी भी भांति का 5 वर्ष तक के कारावास अथवा रु. 25,000/ तक के अर्थदंड अथवा दोनों।

धारा 12 – अपने को निरापराध सिद्ध करने के लिए सबूत का भार अभियुक्त पर।

धारा 13 – समस्त अपराध संज्ञेय तथा अजमानतीय।

धारा 14 – अपराध कारित करने के लिए दुष्प्रेरण अथवा प्रयत्न भी अपराध कारित करने वाले के लिए उपबंधित दण्ड से दंडित होगा।

दिल्ली – दिल्ली कृषिक पशु संरक्षण अधिनियम, 1994

धारा 4 – गोवंश वध पर पूर्ण प्रतिबंध।

धारा 5 – वध के लिए गोवंश के निर्यात व परिवहन पर प्रतिबंध।

धारा 8 – दिल्ली में वध किए गए गोवंश का मांस कब्जे में रखने पर प्रतिबंध।

धारा 9 – दिल्ली से बाहर वध किए गए गोवंश का मांस कब्जे में रखने पर प्रतिबंध।

धारा 12 धारा 4 या 5 – के प्रावधान के उल्लंघन पर पांच वर्ष तक का कारावास तथा रु. 10,000/तक का अर्थदंड।

धारा 13 धारा 8 या 9 – के प्रावधानों के उल्लंघन पर एक वर्ष तक का कारावास अथवा रु. 2,000/तक का अर्थदंड।

धारा 14 – सबूत का भार अभियुक्त पर, कि उसने अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं किया।

धारा 15 – अपराध संज्ञेय तथा गैर जमानतीय।

गुजरात – गुजरात पशु परिरक्षण अधिनियम, 1954 (2011 में संशोधित)

धारा 5 – गोवंश वध पर पूर्ण प्रतिबंध।

धारा 6ए – राज्य के अन्दर एक स्थान से दूसरे स्थान को वध के लिए गोवंश का परिवहन प्रतिबंधित।

धारा 6बी – गोमांस अथवा गोमांस उत्पादों को कब्जे में रखना, उसकी खरीद व बिक्री प्रतिबंधित।

धारा 8 – अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन पर 7 वर्ष (न्यूनतम 3 वर्ष) तक का कारावास तथा रु. 50,000/- (न्यूनतम रु. 25000/-) तक का अर्थदंड।

धारा 8(4) – धारा 6ए अथवा धारा 6 बी के प्रावधानों के उल्लंघन पर 3 वर्ष तक का कारावास तथा अर्थदंड रु. 25000/- तक।

धारा 9 – अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के सभी अपराध संज्ञेय। धारा 1 – अपराध कारित करने में सहयोग करना भी अपराध की भाँति दंडनीय।

पंजाब – पंजाब गोवध प्रतिशेध अधिनियम, 1955 (2011 में संशोधित)

धारा 3 – गोवंश वध पर पूर्ण प्रतिबंध।

धारा 4(ए) – गोवंश को वध के लिए राज्य से बाहर ले जाने पर प्रतिबंध।

धारा 4(बी)- गोवंश को बिना अनुज्ञा पत्र (परमिट) राज्य के बाहर ले जाने पर प्रतिबंध।

धारा 5 – गोमांस व गोमांस उत्पाद की बिक्री करने/करवाने पर प्रतिबंध।

धारा 6 – अनार्थिक गोवंश के भरण-पोषण के लिए सरकार अथवा सरकार द्वारा दिए गए निर्देश पर स्थानीय निकाय/प्राधिकरण द्वारा संस्थानों की स्थापना का प्राविधान।

धारा 7धारा 6 – के प्रयोजनार्थ सरकार अथवा निकाय शुल्क आरोपित कर सकती है।

धारा 8 धारा 3, 4ए, 4बी या धारा 5 – के प्रावधानों के उल्लंघन पर 10 वर्ष तक का कठोर कारावास तथा/अथवा रु. 10,000/- तक का अर्थदंड।

धारा 9 – अपराध संज्ञेय व गैर जमानतीय।

हरियाणा – हरियाणा गोवध प्रतिषेध अधिनियम, 1980 (पंजाब गोवध प्रतिषेध अधिनियम निम्न वर्णित संशोधनों के साथ हरियाणा में प्रभावी)

धारा 4 – निर्यात के लिए परमिट – गोवंश को राज्य के बाहर ऐसे राज्य में ले जाने के लिए परमिट नहीं दिया जायेगा जिसमें गोवंश वध पर पूर्णतः प्रतिबंध न हो।

धारा 8 – धारा 3, 4, 4(ख) या धारा 5 – के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए 5 वर्ष तक का कठोर कारावास तथा रु. 5,000 तक का अर्थदंड।

हिमाचल प्रदेश गोवध प्रतिषेध अधिनियम, 1955 प्रभावी है।

  • जम्मू कश्मीर – रणवीर दंड संहिता, 1932 संवत 1989
  • धारा 298ए – गोवंश वध करने पर 10 वर्ष तक का कारावास तथा अर्थदंड।
  • धारा 298बी – गोमांस कब्जे में रखने पर एक वर्ष तक का कारावास तथा रु. 5,000/- तक अर्थदंड।

झारखंड – झारखंड गोवंशीय पशु हत्या प्रतिषेध अधिनियम, 2005

धारा 3 – गोवंशीय पशु की हत्या का प्रतिषेध।

धारा 4 – हत्या के लिए गो-पशुओं के परिवहन का प्रतिषेध। (क) बिना अनुज्ञा गो-पशुओं का राज्य के बाहर निर्यात का प्रतिषेध।

धारा 5 – हत्या के लिए गो-पशुओं का राज्य के बाहर निर्यात का प्रतिषेध।

धारा 6 – गोवंशीय पशुओं का मांस कब्जे में रखने का प्रतिषेध।

धारा 7 – गोमांस विक्रय निषिद्ध।

धारा 8 – सरकार अथवा सरकार द्वारा निर्देशित स्थानीय निकायों द्वारा अनार्थिक गायों के भरण पोषण के लिए संस्थाओं की स्थापना।

धारा 9– धारा 8 – के प्रावधान के प्रयोजनार्थ प्रभार और शुल्क आरोपण।

धारा 11- अभिग्रहीत गोवंशीय पशु की अभिरक्षा मामलों का अंतिम निपटारा होने तक सक्षम अधिकारी के आदेश से ऐसे पशुओं के कल्याणार्थ कार्य कर रही किसी मान्यता प्राप्त स्वैच्छिक एजेंसी या धारा-8 के अन्तर्गत स्थानीय निकायी को सौंपी जा सकेगी।

धारा 12(1) दंड : धारा 3 या धारा 5 या धारा 6 या धारा 7 – के उपबंधों के उल्लंघन, अथवा उल्लंघन के प्रयास या दुष्प्रेरण के लिए कम-से-कम एक वर्ष का तथा अधिकतम दस वर्ष तक का कठोर कारावास तथा रु. 10,000=00 तक का अर्थदंड।

धारा 12(2)- धारा 4(क) या धारा 4(ख) – के उपबंधों के उल्लंघन के लिए दोनों में से किसी भाँति के 3 वर्ष तक के कारावास तथा रु. 5,000=00 तक का अर्थदंड।

धारा 13 – गोवंशीय पशु को शारीरिक क्षति पहुंचाने के लिए एक वर्ष से तीन वर्ष तक का कठोर कारावास तथा रु. 3,000=00 तक का अर्थदंड।

धारा 14 सबूत का भार – यह साबित करने का भार अभियुक्त पर होगा कि अपराध उसने कारित नहीं किया। धारा 16 – अपराध संज्ञेय तथा गैर जमानतीय।

मध्य प्रदेश – मध्य प्रदेश गोवंश वध प्रतिषेध अधिनियम, 2004

धारा 4 – गोवंश वध का प्रतिषेध।

धारा 5 – गोमांस कब्जे में रखने व गोमांस परिवहन करने का प्रतिषेध।

धारा 6 – वध के लिये गोवंश के परिवहन करने अथवा कराने का प्रतिषेध।

धारा क(1), धारा 6(2) – में प्रावधानिक अनुज्ञा पत्र प्राप्त किये बिना गोवंश के निर्यात का प्रतिषेध। धारा क(2) – सक्षम प्राधिकारी कृषि या डेयरी उद्योग के लिए या किसी पशु मेले में भाग लेने हेतु आवेदन पत्र प्राप्त होने पर सात दिन के अन्दर अनुज्ञा पत्र स्वीकार अथवा अस्वीकार कर सकेगा। धारा 6क(3) – सक्षम प्राधिकारी के आदेश से व्यथित व्यक्ति आदेश प्राप्ति के 30 दिन के अन्दर संभागीय आयुक्त के समक्ष आवेदन कर सकेगा। धारा 6ख – सक्षम प्राधिकारी से अनुज्ञा पत्र प्राप्त किये बिना मध्य प्रदेश से होते हुए किसी अन्य राज्य को गोवंश के परिवहन पर प्रतिबन्ध।

धारा 7 – राज्य सरकार ऐसी संस्थानों का सुदृढ़िकरण करेगी जो गोवंश के कल्याण में लगी हुई है।

धारा 8 – संस्था का भार – साधक व्यक्ति, असशक्त, बूढ़े व रोगी गोवंश की देखभाल तथा भरण-पोषण के लिए उनके स्वामियों से ऐसे प्रभारों का उद्ग्रहण कर सकेगा जैसे कि विहित किया जाये।

शास्तिः

धारा 9(1)- धारा 4 – के उपबंधों के उल्लंघन, प्रयास या दुष्प्रेरण के लिए किसी भी भाँति के न्यूनतम 1 वर्ष तथा अधिकतम 7 वर्ष तक का कारावास तथा न्यूनतम रुपये 5,000=00 तक का अर्थदंड।

धारा 9(2)- धारा 5, 6, 6क तथा 6ख – के उपबन्धों के उल्लंघन, प्रयास या दुष्प्रेरण के लिए न्यूनतम 6 माह तथा अधिकतम 3 वर्ष का कारावास तथा रुपये 5,000=00 तक अर्थदंड।

धारा 10 – अपराध संज्ञेय तथा अजमानतीय होंगे।

धारा 11 – सक्षम अधिकारी प्रवेश, निरीक्षण, तलाशी तथा अभिग्रहण हेतु सक्षम।

राजस्थान – राजस्थान गोवंशीय पशु (वध का प्रतिषेध और अस्थायी प्रव्रजन या निर्यात का विनियमन) अधिनियम, 1995

धारा 3 – में गोवंश वध का प्रतिषेध है।

धारा 4 – में गोमांस तथा गोमांस उत्पादों के कब्जे, विक्रय या परिवहन का प्रतिषेध है।

धारा 5 – में वध के लिए गोवंश के निर्यात अर्थात राज्य से बाहर ले जाने  का प्रतिषेध है, था अन्य प्रयोजनों के लिए परमिट लेकर ही गोंवंश  को राज्य के बाहर ले जाये या जा सकने का प्रवधान है।

धारा 6 – में अपराध कारित करने के उद्देश्य से गोवंश का परिवहन करने/कराने वाला परिवाहक भी उसी अपराध को कारित करने वाले की भाँति दंड का भागी होगा।

धारा 7 – अभिग्रहीत गोवंश को मान्यता प्राप्त स्वैच्छिक गोपालक संस्था या गोशाला या गोसदन की अभिरक्षा में दिया जाएगा।

धारा 8(1)- धारा 3 – के उपबंधों के उल्लंघन के लिए कम-से-कम एक वर्ष व अधिकतम दस वर्ष तक के कठोर कारावास तथा रु. 10,000=00 तक का अर्थदंड।

धारा 8(2)- धारा 4 या 5 – के उपबंधों के उल्लंघन के लिये कम-से-कम 6 मास व अधिकतम 6 वर्ष तक के कठोर कारावास तथा रु. 5,000/- तक का अर्थदंड।

धारा 9 – में गोवंश को शारीरिक पीड़ा, रोग, अंग शैथिल्य कारित करने अथवा उसका अंग काटने अथवा उसके लिए किसी को दुष्प्रेरित करने के लिए तीन वर्ष तक का कठोर कारावास तथा रु. 3,000=00 तक का अर्थदंड।

धारा 10 – में गोवंश को साशय क्षति पहुँचाने के लिए 7 वर्ष तक का कठोर कारावास तथा रु. 7,000=00 तक का अर्थदंड।

धारा 11 – में अपराध कारित न करने का साक्ष्य प्रस्तुत करने का भार अभियुक्त पर।

उत्तर प्रदेश – उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम, 1955 (संशोधित – 2002)

धारा 3 – गोवंश वध का पूर्ण प्रतिषेध।

धारा 5 गोमांस की बिक्री अथवा परिवहन पर प्रतिबन्ध।

धारा 5(ए) – बिना परमिट गोवंश को राज्य से बाहर ले जाने पर प्रतिबन्ध।

धारा 6 – राज्य सरकार अथवा राज्य सरकार द्वारा निर्देशित कोई स्थानीय प्राधिकरण अथवा राज्य सरकार की अनुमति से सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 के अंतर्गत पंजीयत कोई समिति (सोसायटी) गोवंश के भरण-पोषण / देखभाल के लिए संस्था स्थापित करेगी।

धारा 8 धारा 3 अथवा धारा 5 – के प्रावधानों के उल्लंघन करने वाले को 7 वर्ष तक का कठोर कारावास तथा रु. 10,000/- तक का अर्थदंड, वध का प्रयास करने वालों को इसका आधा दंड तथा पूरा अर्थदंड।

धारा 9 धारा 8(1) – के अन्तर्गत दंडनीय अपराध संज्ञेय तथा गैर जमानतीय।

उत्तराखंड – उत्तराखंड गोवंश संरक्षण अधिनियम, 2007

धारा 3 –  गाय तथा गाय की संतति के वध पर प्रतिषेध।

धारा 5 – गोमांस अथवा गोमांस उत्पाद कब्जे में रखने, उसका परिवहन करने, बेचने का प्रतिषेध।

धारा 6 – बिना अनुज्ञा पत्र गोवंश का राज्य के बाहर परिवहन निषिद्ध।

धारा 7 – गोवंश को आवारा विचरण के लिए छोड़ना अपराध।

धारा 8 – नगरीय क्षेत्र में गाय रखने हेतु मुख्य नगर अधिकारी से पंजीयन प्रमाण पत्र लेना तथा रेडियो फ्रीक्वेंसी से चिन्हीकरण अनिवार्य।

धारा 9 – अलाभकारी गोवंश के भरण-पोषण व देखरेख के लिए राज्य सरकार अथवा गैर सरकारी संस्था द्वारा संस्थान स्थापित किए जायेंगे।

धारा 10धारा 9 – के प्रयोजनों के लिए राज्य सरकार अथवा गैर सरकारी संस्थाएं अधिभार अथवा शुल्क उद्ग्रहीत कर सकेंगे।

धारा 11(1) धारा 3 या 5 – के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए न्यूनतम 3 वर्ष एवं अधिकतम 10 वर्ष तक का कठोर कारावास तथा न्यूनतम रु. 5000.00 तथा अधिकतम रु. 10,000.00 तक जुर्माना। (2) धारा 6 – के प्रावधान के उल्लंघन के लिए किसी भी भांति का तीन वर्ष तक कारावास तथा न्यूनतम रु. 2000.00 तथा अधिकतम रु. 2500.00 तक जुर्माना। (3) धारा 7 व 8 – के प्रावधान के उल्लंघन के लिए एक माह तक का कारावास तथा रु. 1000.00 तक जुर्माना।

धारा 12 धारा 11(1) – के अंतर्गत दंडनीय अपराध संज्ञेय एवं अजमानतीय।

आंशिक निषेध करने वाले राज्यों के कानून

आसाम – आसाम पशु परिरक्षण अधिनियम, 1950

धारा 5 – बिना प्रमाण पत्र के पशु अर्थात सांड़, बैल, गाय, बछिया, बछड़ा, भैंस और भैंसा, पाड़ा, पड़िया के वध पर प्रतिबन्ध। प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जायेगा जब तक कि पशुचिकित्सा अधिकारी के अनुसार :- (ए) पशु 14 वर्ष से अधिक आयु का न हो या (बी) क्षति अंग-भंग या असाध्य रोग के कारण पशु स्थायी रूप से कार्य करने में अक्षम या प्रजनन के अयोग्य न हो गया हो।

धारा 8 – अधिनियम के किसी प्रावधान के उल्लंघन पर 6 मास तक का कारावास या रु. 1000/- का अर्थदण्ड या दोनों।

धारा 9 – सभी अपराध संज्ञेय।

धारा 10 – अपराध के लिए दुष्प्रेरण अथवा अपराध कारित करने के प्रयत्न पर भी अपराध कारित करने का दण्ड।

धारा 13 – इस अधिनियम का प्रभाव इदुलजुहा के त्यौहार के अवसर पर सरकार द्वारा निर्दिष्ट गुप्तता

की शर्त को ध्यान रखते हुए किसी पशु के वध पर लागू नहीं होगा।

आंध्र प्रदेश – आंध्र प्रदेश गोवध प्रतिषेध तथा पशु संरक्षण अधिनियम, 1977

धारा 5 – गाय, बछिया, बछड़े तथा भैंस पड़िया, पाड़े के वध का प्रतिषेध कोई भी व्यक्ति गाय, बछिया, बछड़े अथवा भैंस व पाड़े, पड़िया का वध नहीं करेगा और न ही करवायेगा तथा न ही वध करने के लिए प्रस्थापित करवायेगा।

धारा 6 – (1) सक्षम प्राधिकारी के प्रमाणपत्र के बिना पशुओं के वध का प्रतिषेध। (2) प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जायेगा यदि पशु (ए) प्रजनन (बी) गाड़ी या हल खींचने या अन्य कृषि कार्यों या (सी) दूध देने या गर्भ धारण करने के प्रयोजन के लिए उपयोगी है या उपयोगी हो सकता है।

धारा 10 – दंड : इस अधिनियम के प्राविधानों के उल्लंघन करने पर 6 माह तक का कारावास या रु. 1000.00 तक का अर्थदंड या दोनों।

धारा 11 – अपराध प्रसंज्ञेय।

धारा 12 – अपराध के लिए दुष्प्रेरण और प्रयत्न भी अपराध कारित करने के लिए दंड के बराबर दंडनीय।

धारा 17 – गायों व अन्य पशुओं के भरण-पोषण व देखभाल के लिए संस्थानों की स्थापना : (1) शासन, गायों व भेजे गये पशुओं के भरण-पोषण व देखभाल के लिए जैसे आवश्यक समझे ऐसे स्थानों पर संस्थान स्थापित कर सकेगा या स्थानीय निकाय अथवा पंजीकृत संस्था को इस हेतु निर्देश दे सकेगा। (2) शासन ऐसे संस्थानों/संस्थाओं के उचित प्रबन्धन के लिए नियम बना कर प्रावधान कर सकेगा। (3) शासन या शासन की पूर्व स्वीकृति के बाद स्थानीय निकाय उन संस्थानों/ संस्थाओं के पोषण के लिए शुल्क आरोपित कर सकेगा।

बिहार – बिहार पशु संरक्षण एवं सुधार अधिनियम, 1955 (संशोधित-1982)

धारा 3 – सभी आयु की गायों, बछिया-बछड़ों के वध पर प्रतिबंध, 15 वर्ष से कम आयु के बैलों व सांड़ों के वध पर प्रतिबंध।

धारा 4- धारा 3 – के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए छः माह तक का कारावास तथा रु. 1000/- तक का अर्थदण्ड।

धारा 4क – गोवंश को बिहार राज्य से बाहर ले जाने पर प्रतिबंध तथा इस प्रावधान के उल्लंघन पर धारा-4 में प्रावधानित दण्ड।

गोआ – गोआ, दमन तथा दीव गोवध प्रतिषेध अधिनियम 1978

धारा 3 – गाय, बछिया व बछड़े के वध पर प्रतिबन्ध।

धारा 5 – गोमांस तथा गोमांस उत्पाद के विक्रय पर प्रतिबन्ध।

धारा 6 – सरकार अथवा सरकार द्वारा निर्देशित स्थानीय निकाय प्राधिकरण द्वारा अनार्थिक गायों के भरण-पोषण व सार-सम्भाल हेतु संस्थानों की स्थापना की जायेगी।

धारा 7- धारा 6 – में निहित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शुल्क आरोपण किया जा सकता है।

धारा 8(1)- धारा 3 या धारा 5 – के उल्लंघन अथवा उल्लंघन के प्रयास के लिए 2 वर्ष तक का कारावास व रु. 1,000/- तक का अर्थदण्ड या दोनों। (3) अपराध कारित न होना साबित करने का भार अभियुक्त पर।

धारा 9 – धारा 8(1) – के अन्तर्गत दंडनीय अपराध संज्ञेय तथा गैर जमानतीय।

कर्नाटक – कर्नाटक गोवध प्रतिषेध तथा पशु संरक्षण अधिनियम, 1964

धारा 4 – गाय, बछिया, बछड़े तथा पड़िया के वध का प्रतिषेध।

धारा 5 – प्रमाणपत्र के बिना पशु वध प्रतिषेध – यदि सांड़, बैल, भैंस, भैंसा 12 वर्ष से अधिक आयु का है या चोट, अंगभंग या अन्य कारण से प्रजनन, भार वाहन या दूध देने हेतु स्थायी रूप से अक्षम हो गया हो, उसके वध के लिए सक्षम अधिकारी द्वारा प्रमाणपत्र जारी किया जा सकता है।

धारा 8 – गाय तथा पशुओं का वध हेतु परिवहन पर प्रतिबंध।

धारा 9 – गाय, पाड़ा, पड़िया का वध हेतु क्रय-विक्रय का प्रतिबंध।

धारा 11 – अधिनियम के किसी भी प्रावधान के उल्लंघन के लिए 6 मास तक का कारावास या रु. 1,000/- तक का अर्थदंड या दोनों।

धारा 12 – अधिनियम के अधीन सभी अपराध संज्ञेय।

धारा 13 – अपराध का दुष्प्रेरण अथवा प्रयास करने वाला भी अपराध कारित करने के लिए निर्धारित दंड से दंडित होगा।

महाराष्ट्र – महाराष्ट्र पशु परिरक्षण अधिनियम, 1977 (1992 तक संशोधित)

धारा 5 – गाय के वध का प्रतिषेध (गाय में बछिया व बछड़ा सम्मिलित हैं)।

धारा 6 (1) सांड़, बैल, पाड़ा व पड़िया का वध बिना अनुज्ञापत्र के नहीं। (2) अनुज्ञा पत्र जारी नहीं किया जायेगा । (3) बैल यदि गाड़ी खींचने तथा कृषि कार्य के लिए उपयोगी है या उपयोगी हो सकता है। (4) सांड यदि प्रजनन के लिए उपयोगी है या उपयोगी हो सकता है। (5) भैंस यदि दूध देने के लिए उपयोगी है या उपयोगी हो सकती है।

धारा 9 दण्ड – अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए 6 माह तक का कारावास या रु. 1,000=00 तक का अर्थदण्ड या दोनों।

धारा 10 –  अपराध संज्ञेय होंगे।

धारा 11 –  अपराध कारित करने का दुष्प्रेरण अथवा प्रयास भी अपराध कारित करने की भांति दंडनीय।

उड़ीसा – उड़ीसा गोवध प्रतिषेध अधिनियम, 1960

धारा 3(1) (ए) – गाय, जिसमें बछड़ा व बछिया सम्मिलित हैं, के वध का प्रतिषेध। (बी) सांड़ अथवा बैल  का वध सक्षम अधिकारी से प्रमाण पत्र लिए बिना किया जाना प्रतिबंधित।

धारा 3 उपधारा (1)(बी) – के अन्तर्गत प्रमाणपत्र उसी अवस्था में जारी किया जासकता है जब कि (ए) सांड़ या बैल 14 वर्ष से अधिक आयु का है। (बी) सांड प्रजनन या सेवा देने में स्थायी रूप से अक्षम हो गया हो तथा बैल हल व गाड़ी खिंचाई व अन्य कृषि कार्य के लिए स्थायी रूप से अयोग्य हो गया हो, बशर्ते कि ऐसी अक्षमता या अयोग्यता जानबूझ कर कारित न की गयी हो।

धारा 5 – सरकार अथवा सरकार द्वारा निर्देशित स्थानीय निकाय द्वारा अनार्थिक गायों के पालन-पोषण हेतु संस्थानों की स्थापना की जायेगी।

धारा 6 – सरकार या स्थानीय निकाय धारा-5 के प्रयोजनार्थ निर्धारित रीति से प्रभार/शुल्क आरोपित कर सकेगी।

धारा 7(1), धारा 3 – के प्रावधानों के उल्लंघन के लिये दो वर्ष तक का कठोर कारावास या रु. 1,000=00 तक अर्थदण्ड या दोनों।

धारा 8, धारा 7(1) – के अन्तर्गत दंडनीय अपराध संज्ञेय होंगे।

पांडिचेरी – पांडिचेरी गोवध प्रतिषेध अधिनियम, 1968

धारा 3 – गोवध निषेध तथा सांड़ व बैल के वध निषेध के प्राविधान उड़ीसा के अधिनियम की धारा 3 के जैसे ही हैं।

धारा 5 – में गोमांस के उत्पाद का विक्रय या परिवहन निषिद्ध है।

धारा 6 – में सरकार व स्थानीय निकाय द्वारा संस्थानों की स्थापना तथा धारा-7 में तदर्थ प्रभार/शुल्क आरोपित करने का प्रावधान है।

धारा 8 (1) दंड व अर्थदण्ड : धारा 3 अथवा 5 – के प्राविधानों का उल्लंघन करने, उल्लंघन करने का प्रयास अथवा दुष्प्रेरण करने के अपराध के लिए 2 वर्ष तक का कठोर कारावास अथवा रु. 1000.00 तक का अर्थदण्ड अथवा दोनों।

धारा 8(3) – अपने को निरपराध सिद्ध करने का भार अभ्युक्त पर।

धारा 9 – में अपराधों के संज्ञेय तथा गैर जमानतीय होने का प्रावधान है।

तमिलनाडु – तमिलनाडु पशु संरक्षण अधिनियम, 1958

धारा 2(ए) – पशु से अभिप्रेत एक सांड़, बैल, गाय, बछड़ा, भैसे, भैंसा, पाड़ा या पड़िया है।

धारा 4(1) – बिना प्रमाण पत्र के पशुवध पर प्रतिबन्ध।

धारा 4(3) (ए) – दस वर्ष से अधिक आयु के तथा कार्य या प्रजनन के योग्य न रहने या, (बी) क्षति, अंगभंग या असाध्य रोग के कारण कार्य करने या प्रजनन के लिए स्थायी रूप से अक्षम हुए पशु के वध हेतु प्रमाण पत्र सक्षम अधिकारी द्वारा जारी किया जा सकता है।

धारा 8, धारा 4(1) – के प्रावधानों के उल्लंघन अथवा पशु को वध योग्य बनाने के उद्देश्य से या यह जानते हुए कि वह (कृत्य) संभवतः ऐसा कर सकता है-किसी पशु को जहर देने, अंगभंग करने या उसे अनुपयोगी बनाने के लिए तीन वर्ष तक का कारावास या रु. 1,000/- तक का अर्थदण्ड या दोनों से दंडित किया जायेगा।

धारा 9 – अपराध कारित करने का दुष्प्ररेण अथवा उसमें सहयोग के लिए भी अपराध कारित करने के लिए दंड के बराबर दंड।

पश्चिम बंगाल – पश्चिम बंगाल पशुवध नियंत्रण अधिनियम, 1950

धारा 4(1) – बिना प्रमाण पत्र के पशु अर्थात सांड़, बैल, गाय, बछिया, बछड़ा, भैंस, भैंसा, पाड़ा, पड़िया तथा वंध्याक्रत भैंसे के वध का निषेध।

धारा 4(2) – नगरपालिका या पंचायत समिति का अध्यक्ष तथा पशु चिकित्सा शल्य चिकित्सक संयुक्त हस्ताक्षर से प्रमाण पत्र जारी कर सकते हैं कि पशु वध योग्य है, यदि वे दोनों एकमत हों और जिसे लिपिबद्ध किया जाये कि :- (ए) पशु 14 वर्ष से ऊपर की आयु का है तथा कार्य व प्रजनन के अयोग्य है या (बी) पशु आयु, चोट, विकलांगता या किसी असाध्य रोग के कारण कार्य या प्रजनन के लिए स्थायी रूप से अक्षम हो गया है।

धारा 4(3) – यदि उपर्युक्त अध्यक्ष तथा चिकित्सक में मतभेद हो तो मामला पशु चिकित्सा अधिकारी को सुपुर्द कर दिया जायेगा तथा उसके मतानुसार प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा अथवा जारी नहीं किया जाएगा।

धारा 7 – अधिनियम के प्रावधान के उल्लंघन के लिए 6 मास तक का कारावास या रु. 1,000/- का अर्थदण्ड या दोनों।

धारा 8 – अपराध संज्ञेय।

धारा 9 – अपराध की दुष्प्रेरणा अथवा प्रयास के लिए भी अपराध कारित करने का दंड।

धारा 12 – में बकरीद पर गाय के वध की छूट दिये जाने का प्रावधान था जिसे माननीय उच्चतम न्यायालय ने स्टेट आफ वैस्ट बंगाल बनाम आशुतोष लाहिरी (AIR 1995 SC-464 में) असंवैधानिक घोषित करते हुए निरस्त कर दिया।

गौ हत्या पर सबसे सख्त कानून वाले राज्य

गुजरात राज्य विधानसभा ने 31 मार्च 2017 को गुजरात पशु संरक्षण अधिनियम में संशोधन कर गौ हत्या कानून को देश का सबसे सख्त कानून बना दिया है। यह संशोधन 1954 के गुजरात पशु संरक्षण कानून के तहत किए गए हैं, जिसके अनुसार गौ हत्या या हत्या के लिया गायों को एक जगह से दूसरे जगह ले जाना और गौमांस रखना गैर जमानती अपराध है।  नए कानून के तहत गो हत्या करने वालों को या किसी भी आदमी को बीफ़ ले जाने पर भी उम्र क़ैद की सज़ा हो सकती है। गौमांस रखने पर अधिकतम 10 साल की जेल और एक लाख रुपए से 10 लाख रुपए तक जुर्माने का प्रावधान है। इसके अलावा बीफ़ लाने एवं ले जाने और गाय काटने पर एक लाख रुपए से पांच लाख रुपए तक का ज़ुर्माना भी लग सकता है। इन संशोधनों के बाद गायों और बैलों जैसे पशुधन की रक्षा के लिए देश के सख्त कानूनों के साथ गुजरात गौ संरक्षण के मामले में सबसे ऊपर है। गुजरात में हालिया संशोधन से पहले जम्मू-कश्मीर जैसे मुस्लिम-प्रभुत्व वाले राज्य में गौ हत्या के खिलाफ सबसे सख्त कानून मौजूद था। कानून 1932 में रणबीर दंड संहिता के तहत लागू किया गया था, जो डोगरा शासक रणबीर सिंह के शासनकाल के दौरान तैयार किया गया था। यह कानून अब भी जम्मू-कश्मीर में लागू है। कानून के तहत गौ हत्या एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है। कानून तोड़ने के जुर्म में 10 साल तक की जेल और पशु की कीमत से पांच गुना तक का जुर्माना देना पड़ सकता है। जम्मू-कश्मीर में गाय की कीमत कई लाख तक हो सकती है।

हरियाणा गोवंश संरक्षण एवं गौसंवर्धन एक्ट 2015 के तहत यहां देश का दूसरा सबसे सख्त कानून बनाया गया है, जिसमे गौ की हत्या को एक संज्ञेय और गैर जमानती अपराध के रुप में परिभाषित किया गया है। अपराध का अधिकतम दंड दस साल तक की सश्रम जेल और एक लाख रुपए तक के जुर्माने के रुप में हो सकता है। झारखंड गोवंशीय पशु हत्या प्रतिषेध अधिनियम 2005 में 10 साल की सजा और 10 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान है। उत्तराखंड में भी गौ हत्या पर 10 वर्ष की कारावास की अधिकतम सजा तय है।

उत्तर प्रदेश में गाय संरक्षण के लिए पुलिस ने नया कदम उठाया है। अब प्रदेश में जो गोहत्या को दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी रासुका के तहत केस दर्ज किया जाएगा। यूपी के डीजीपी ने ये आदेश जारी किया है। सिर्फ गोहत्या पर ही नहीं, बल्कि गोतस्करी करने वालों पर भी सख्त कार्रवाई की जाएगी। गोतस्करी का दोषी पाये जाने पर यूपी पुलिस नेशनल सिक्यूरिटी एक्ट (एनएसए) के तहत मुकदमा दर्ज करेगी। गोहत्या और गोतस्करी का दोषी पाये जाने पर एंटी सोशल एक्टीविटी कानून के तहत भी केस दर्ज होगा।

डॉ. मुकेश कुमार श्रीवास्तव

पशुचिकित्सक