मिल्क फीवर एक मेटाबोलिक बीमारी

मिल्क फीवर / दुग्ध ज्वर 

मिल्क फीवर एक मेटाबोलिक बीमारी है (Milk Fever is Metabolic Disease in Cattle) जो गाय-भैंस में ब्याने से कुछ समय ही पहले या ब्याने के बाद कुछ दिनों में यह होती है। इसमें पशु के शरीर में कैल्शियम (Calcium) की भारी कमी हो जाती है, मांसपेशियां कमजोर हो जाती है, शरीर में ब्लड (Blood) का दौरा काफी कम व धीमा हो जाता है। अंत में पशु काफी सुस्त हो लगभी बेहोष सा निढ़ाल हो जाता है। पशु एक तरफ पेट (Flank) की तरफ गर्दन मोड़ कर बैठा रहता है। हालांकि इसे “मिल्क फीवर” (Milk Fever in cattle) कहते हैं लेकिन इसमें पशु के शरीर का टेम्प्रेचर (temperature) सामान्य से कम ही होता है। इस कारण शरीर ठंडा पड़ सकता है।

सामान्य रुप से गाय-भैंस में सिरम कैल्शियम 10 mg % होता है। जब यह लेवल 7 mg % से नीचे गिर जाता है तो मिल्क फीवर के लक्षण प्रकट होते हैं। यह इन पशुओं में किसी भी उम्र में हो जाता है। मिल्क फीवर (Milk Fever in Cattle) अधिक दूध देने वाली 6 से 11 वर्ष की उम्र की गायों व भैंसों में तीसरे से सातवें ब्यात में अधिक होता है। पहले ब्यात में यह रोग प्रायः नहीं होता है। प्रायः ब्याने के 72 घंटों के अंदर होता है, ब्याने के 10वें दिन के आसपास भी हो सकता है जो अधिक गंभीर होता है। इसके बाद भी ब्याने के दूसरे व तीसरे महीने में भी मिल्क फीवर के लक्षण नज आ सकते हैं जब पशु के दूध देने की मात्रा अधिक होती है। ब्याने के बाद गाय-भैंसो के अलावा यह रोग मादा भेड़, बकरियों में भी पाया जाता है। इसके अलावा लंबे ट्रांसपोर्ट के बाद, एकाएक आहार की मात्रा व गुणवत्ता में कमी आदि से भी इस रोग के लक्षण प्रकट हो सकते हैं। गोवंश में जर्सी गाय में यह अधिक होता है।

रोग का कारण (Etilogy)

ब्लड के सिरम कैल्शियम लेवल में कमी – मिल्क फीवर।
बल्ड में कैल्शियम की कमी प्रमुख तीन कारणों से होती है

  • ब्याने के बाद काफी कैल्शियम कोलोस्ट्रम (Calcium Colostrum) के साथ शरीर के बाहर आ जाता है कोलोस्ट्रम में ब्लड से 12-13 गुना अधिक कैल्शियम होता है।
  • ब्याने के बाद एकाएक कोलोस्ट्रम में कैल्शियम निकल जाने के कारण हड्डियों से शरीर को कैल्शियम जल्दी नहीं मिल पाता है।
  • यदि ब्याने के बाद एनिमल को कम आहार दिया जाए तो रुमन और आंतों में भी कम अहार होने से ये कम सक्रिय होंगे और कैल्शियम का शोषण भी कम होगा। थके हुए व भूखे पशु में मिल्क फीवर के लक्षण जल्दी प्रकट होते हैं।

मिल्क फीवर तीन अवस्थाओं में होता है

  1. ब्याने से पहले गर्भकल के आखरी दिनों में तथा ब्याने के दौरान।
  2. प्रायः ब्याने के बाद 48 घंटों के अंदर मिल्क फीवर होता है, लेकिन कभी-कभी ब्याने के बाद 10 दिन के अंदर भी हो सकता है।
  3. ब्याने के 6-8 सप्ताह बाद भी मिल्क फीवर हो सकता है।

शरीर में मांसपेशियों में सामान्य तनाव (tonacity) बनाए रखने के लिए कैल्शियम आवश्यक है। कैल्शियम मांसपेशियों में तनाव को बढ़ाता है जबकि मॅग्नेशियम मांसपेशियों में तनाव को घटाता है। पशु शरीर के ब्लड में कैल्शियम व मॅग्नेशियम का अनुपात 6ः1 होता है और इस अनुपात में बदलाव आते ही इनकी कमी व बढ़ोतरी के लक्षण प्रकट होते हैं। इनमें तीन स्थितियाँ हो सकती है।

  • लकवा व नषे की हालत।
  • अधिकतर समय पशु बैठा रहता है। मुष्किल से खड़ा होता है। लकवा सी हालत में काॅमा जैसी स्थिति हो जाती है।
  • चारों पैरों में टेटेनस जैसे लक्षण। नीचे लेटी हुई अवस्था में कन्वल्जन होता है।

इसके लक्षण को तीन अवस्था में बांटा जा सकता है

 1. Prepartum Stage (Excitement) – ब्याने से पहले उत्तेजित अवस्था

  • उत्तेजना, टेटेनस जैसे लक्षण तथा अधिक सवेंदनशील।
  • सिर व पैरों में अकड़न आ जाती है।
  • पशु चारा-दाना नहीं खाता है तथा चलने फिरने की अवस्था में नहीं होता है।
  • सिर को इधर-उधर हिलाना।
  • जीभ बाहर लटकी होना तथा दांत किटकिटाना।
  • टेम्प्रेचर – नाॅर्मल या हल्का बढ़ा हुआ।
  • पिछले पैरों में अकड़न, आंशिक लकवा स्थित के कारण पशु गिर जाता है।

2. Second Stage (Sternal recumbency) – गर्दन मोड़कर बैठी हुई अवस्था 

  • एनिमल अपनी गर्दन को एक ओर, फ्लेंक की ओर मोड़कर निढ़ाल सा बैठा रहात है। पशु लेटे रहने की बजाय सीने वाले भाग (sternum) के सहारे बैठा रहता है।
  • मजल सूखा होता है शरीर विशेषकर पैर ठंडे पड़ जाते हैं और शरीर का तापमान कम होता है।
  • एनिमल में टेटेनस व उत्तेजना अवस्था नहीं रहती है।
  • एनिमल खड़ा नहीं हो पाता है।
  • आंखे सूख जाती है तथा आंख की पुतलिया (pupil) फैलकर बड़ी हो जाती है।
  • गुदा (anus) की मांसपेशियां ढीली पड़ जाती है।
  • हालांकि हार्ट रेट काफी बढ़ जाती है (80 प्रति मिनट) लेकिन हार्ट साउंड काफी कम
    सुनाई देती है। पल्स भी कमजोर पड़ जाती है।
  • वेनस प्रेशस कम होने से जुगुलर वेन भी मुश्किल से रेज होती है इसलिए I/V इंजेक्शन  भी मुश्किल से लगता है।
  • रुमन की गति काफी कम हो जाती है जिससे कब्ज (constipation) होती है।

3. Third Stage (Lateral Recumbency) – लेटे रहने की अवस्था

  • पशु सीने के सहारे (sternum) बैठे रहने की बजाय बेहोशी की हालत में लेटी अवस्था (recumbency) में रहता है और खड़ा भी नहीं हो पाता है।
  • टेम्प्रेचर काफी कम हो जाता है, पल्स व हार्ट रेट भी महसूस नहीं हो पाती है इसी कारण जुगुलर वेन भी रेज नहीं हो पाती है।
    बैठे रहने के कारण टिम्पेनी भी हो जाती है। मांसपेशियों के पैरालाइसिस के कारण मूत्र भी नहीं आता है, आता है तो बहुत कम।
  • ट्रीटमेंट जितना जल्दी हो सके, उतना ही अच्छा है। यदि समय पर ट्रीटमेंट नहीं हो तो हार्ट फेल होने से पशु की मौत 12-24 घंटों में हो जाती है।
  • यदि हापोकैल्शियम के साथ हाइपोमॅग्नेशियम भी है तो टेटेनस तथा उत्तेजना के लक्षण नजर आते हैं। यदि हाइपो फाॅस्फोटिमिया है तो कैल्शियम थैरेपी से पशु ठीक हो जाएगा लेकिन खड़ा नहीं हो पाएगा।

निदान (Diagnosis)

  • ब्याने के बाद पशु की लकवा जैसी तथा सुस्त हालत के आधार पर।
  • इसमें प्रमुख लक्षण – Dullness, depression, coma, temperature, recumbency, inability to stand, retention f urine and faeces.
  • एनिमल को I/V कैल्शियम थैरेपी देने से मालूम पड़ जाता है।
  • मिल्क फीवर का कई रोगों से भ्रम हो जाता है- Ketosis, Grass tetany, Acute Indigestion,
    Obturator paralysis, Spinal injury, Fracture of Pelvis, Rupture of joint, Septic metritis, Toxaemic
    condition, Downer cow syndrome.

उपचार (Treatment)

  • ट्रीटमेन्ट जितना जल्दी हो सके करना चाहिए, क्योंकि देरी होने से यदि एक बार एनिमल जमीन पर लेट जाता है यानी (Lateral Recumbency) में चला जाता है तो मांसपेशियों का पैरालाइसिस हो जाता है और डाऊनर काऊ सिन्ड्रोम (downer cow syndrome) हो जता है। जब तक ट्रीटमेन्ट मिले एनिमल यदि लेटा हुआ है तो उसे सहारा देकर बैठाना चाहिए ताकि कॉम्पलीकेशन कम हो। पशु के नीचे भूसा, बोरी या पुराने गद्दों का सहारा रखना चाहिए। मिल्क फीवर की शुरुआती अवस्था में I/V कैल्शियम देने से जादुई ढंग से जल्दी पशु उठ खड़ा होता है। देरी होने पर दो तीन गुना ज्यादा कैल्शियम व अन्य सर्पोटिव थैरेपी देने के बावजूद पशु उठ नहीं पाता है।
  •  Inj. Calcium borogluconate (25%) – 450 ml. 250 ml, I/V and 200 ml, S/C S/C 50&50 ml S/C के दोनों तरफ चार स्थानों पर लगानी चाहिए। ताकि loacl reaction नहीं हो।
  • कई बार तेज गति से  I/V  कैल्शियम देने या अधिक मात्रा में कैल्शियम देने से रिएक्षन हो जाता है। हार्ट रेट बढ़ जाती है। ऐसे में 10% मॅग्नेशियम सल्फेट  I/V  या S/C देना चाहिए। कैल्शियम का एंटीडोट मॅग्नेशियम ही है। कभी-कभी fast I/V  मॅग्नेशियम देने से पशु की मौत भी हो सकती है इसलिए मादा पशु I/V  देने में सहयोग कर रहा है तो  I/V  कैल्शियम धीरे-धीरे देना चाहिए। कैल्शियम हृदय की मांसपेशियों की गति को तेज करता है।
  • बिल्कुल ठंडी बोतल से कैल्शियम को  I/V  नहीं देना चाहिए। इसको पहले बाॅडी टेम्प्रेचर के बराबर करने के लिए थोड़ी देर हल्के गुनगुने पानी में रखना चाहिए।
  • जब हापोकेल्षिमिया के साथ हाइपोमेग्नेसिमिया भी हो तो अकेले कैल्शियम बोरेग्लुकोनेट की बजाय Ca-Mg borogluconate देना चाहिए इसके लिए माइफेक्स देवें।
  • यदि किटोसिस भी है तो 25% डेक्स्ट्रोज 500-1000 ml. I/V दें।

मिल्क फीवर के रोगी में कैल्शियम देने से एकाएक क्या बदलाव आते हैं?

  • पशु को डकारे (bleching) आती है।
  • फ्लें की मांसपेशियां गति करने लगती है।
  • हार्ट साउंड बढ़ जाती है, जुगुलर वेन भी उभी जाती है।
  • सूखे मजल पर पसीना आता है तथा हल्की लार गिरती है।
  • रुमन के मूवमेन्ट बढ़ने से पशु जुगाली करने लगता है।
  • चिकनी म्युकस में लिपटी हुई मिंगने के रुप में गोबर आता है।
  • आखिर में पशु सामान्य रुप से खड़ा हो कर जुगाली करने लगता है।

सहायक चिकित्सा (Supportive Therapy)

  • कई बार गंभीर स्थिति के कारण पशु मृत प्रायः सा हो जाता है ऐसे में कैल्शियम के अलावा अन्य सपोर्टिव थैरेपी भी देनी चाहिए।
  • सोडियम एसिड फाॅस्फेट – 25 gm. नाॅर्मल सेलाइन या डेक्स्ट्रोज के साथ I/V दें। यह बल्ड pH को कम करता है तथा शरीर में कैल्शियम के एब्जोर्वषन को बढ़ाता है।
  • Inj. Mag. Sulphate (10-20%) Solu. 200-*300ml., S/C
  • रुमन के मूवमेन्ट नहीं होने तथा पेरेलिसिस के कारण पशु गोबर भी नहीं करता है। ऐसे में हाथ
    द्वारा हल्के ढंग से गोबर निकालना चाहिए।
  • यदि पशु  अधिक देर बैठा या लेटा रहता है तो टिम्पेनी हो जाती है। इसलिए Inj. Antihistamine
    10-15 m. I/M  देवें।

 

Read: Milk Fever Cases Must be Treated Rationally


डॉ. राजेश कुमार

स्नातकोत्तर पशु चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान,
पी.जी.आई.वी.ई.आर, जयपुर