भारतीय गाय का औषधीय एवं पौराणिक महत्व

भारतीय गाय (Indigenous Breed)

हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि गाय के रीढ़ में सूर्य केतु नाड़ी होती है जो सूर्य के गुणों को धारण करती है। यही कारण है कि गौमूत्र गोबर दूध, दही, घी में औषधीय गुण होते हैं। यह नाड़ी सर्वरोगनाशक, सर्वविषनाशक है, सूर्य के संपर्क में आने पर यह नाड़ी स्वर्ण उत्पादन करती है, जो गाय के मूत्र, दूध एवं गोबर में मिलता है, दूध पीने से मनुष्य के शारीर में चला जाता तथा गोबर के माध्यम से खेतो में चला जाता है।
पंचगव्य का निर्माण देसी गाय के दूध, दही, घी, मूत्र एवं गोबर से किया जाता है जो की कई बीमारियों में लाभदायक है। पंचगव्य की कैंसर में उपयोगिता के लिए पेटेंट लिया जा चूका है, गाय के मूत्र के कई  प्रभावों के लिए ६ पेटेंट अभी तक लिए जा चुके है।

गाय का गोबर मानव जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी है। भारत के ग्रामीण आंचल में गाय के गोबर के बहुत से उपयोग किये जाते हैं। लोग महंगे उत्पाद न खरीदकर गाय के गोबर से काम चला लेते हैं। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था का संतुलन बनकर चलता रहता है। भारत में आज भी दो प्रकार की अर्थव्यवस्था काम कर रही है-एक है शहरी अर्थव्यवस्था और दूसरी है ग्रामीण अर्थव्यवस्था। सरकारी स्तर पर कभी भी यह जांचने परखने का प्रयास नही किया गया कि भारत के सुदूर देहात की अर्थव्यवस्था आज भी सुचारू रूप से क्यों चल रही हैयदि यह जांचा परखा जाए तो उस सुचारू व्यवस्था के पीछे आपको गाय खड़ी मिलेगी। मनुष्य के शरीर के किसी अंग पर सूजन आ जाने पर लोग गाय के गोबर का लेप कर लेते हैं। जो लोग गाय के गोबर को केवल मल ही मानते या समझते हैं वे भूल करते हैं। गाय का गोबर मल नहीं है यह मलशोधक है दुर्गन्धनाशक है एंव उत्तम वृद्धिकारक तथा मृदा उर्वरता पोषक है। यह त्वचा रोग खाज, खुजली, श्वासरोग, शोधक, क्षारक, वीर्यवर्धक, पोषक, रसयुक्त, कान्तिप्रद और लेपन के लिए स्निग्ध तथा मल आदि को दूर करने वाला होता है। गोबर को अन्य नाम भी है गोविन्दगोशकृत, गोपुरीषम्, गोविष्ठा, गोमल आदि। गोबर मे नाईट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, आयरन, जिंक, मैग्निज, ताम्बा, बोरोन, मोलीब्डनम्, बोरेक्स, कोबाल्ट-सलफेट, चूना, गंधक,सोडियम आदि मिलते है।  गाय के गोबर में पूतिरोधी एन्टिडियोएक्टिव एवं एन्टिथर्मल गुण होता है गाय के गोबर में लगभग १६ प्रकार के उपयोगी खनिज तत्व पाये जाते है ।

गाय के पंचगव्य के सेवन से शरीर, मनबुद्घि और अंत:करण के विकारों का शमन होता है। जिससे शरीर की शक्ति बढ़ती है तेज बल और आयुष्य की प्राप्ति होती है। गाय के गोबर से घर में लेपन करने से बहुत से कीटाणु-विषाणु नष्ट हो जाते हैं। इसलिए हमारे गांव-देहात में गोबर के लेपन की परंपरा आज भी चल रही है। जबकि शहरों में लोग कितने ही कीड़़े मकोड़ों (कॉक्रोच आदि) को मारने के लिए घर में रासायनिक कीटाणु नाशकों का प्रयोग करते हैं। जो कि महंगा तो पड़ता ही है साथ ही यह स्वास्थ्य के लिए घातक भी हैं। गाय के लेपन से आणविक विकीरण एवं वायु प्रदूषण से भी रक्षा होती है। जिस समय जापान में हिरोशिमा और नागासाकी पर बम वर्षा की गयी थी तो उस समय जापान ने गाय के गोबर के लेपन का महत्व समझा था। उसके पश्चात वहां पर लोग अपने ओढऩे की चादर को गोबर के घोल को छानकर उसके पानी में भिगोने के पश्चात सुखाकर तब ओढ़ते हैं। जिससे उनके स्वास्थ्य की रक्षा होती है तथा उसकी रोग निरोधक क्षमता भी बढ़ती है।आण्विक विकिरण का प्रतिकार करने में गोबर से पुती दीवारें पूर्ण सक्षम है गांवों में आज भी एक परंपरा देखने को मिलती है कि यदि बच्चा घर के आंगन में शौच कर देता है तो महिलाएं उस शौच पर राख डाल देती हैं। यह राख गाय के उपलों से जलने से बनी होती है तो ही उत्तम होती है।

महिलाएं बच्चे के शौच पर या परंपरागत शौचालयों में राख का ही प्रयोग क्यों करती हैं? उस पर मिट्टी भी तो डाल सकती है । इसका कारण यही है कि हमारे ऋषि पूर्वजों को प्राचीन काल से ही यह ज्ञान रहा है कि गाय के गोबर की राख से ही मल की दुर्गंध समाप्त होती है। मिट्टी से दुर्गंध समाप्त नही हो सकती। हम यह भी देखते हैं कि मल के ऊपर यदि राख डाल दी जाए तो यह मल भी शीघ्र ही खाद बन जाता है। गाय के गोबर की राख से ही हमारे देहात में लोग अपने दांत साफ करते हैं जबकि महिलाएं राख से घर के बर्तनों को साफ करती हैं। जिसके सार्वजनिक प्रयोग से पूरे देश का करोड़ों रूपया बच सकता है, जो कि बर्तनों को साफ करने के लिए विशेष साबुन, सर्फ आदि पर व्यय किया जाता है। इस प्रकार के साबुन व सर्फ से महिलाओं के हाथों में चर्मरोग होने या उनकी त्वचा के कमजोर होने की संभावना बनी रहती है। गांवों में फल-सब्जी के खेतों पर छोटे-छोटे पौधों व बेलों पर यदि कीड़ा लग जाए तो लोग उन पर गाय के गोबर की राख का छिडक़ाव करते हैं। जिसका स्थान आजकल कीटनाशक लेते जा रहे हैं। परंतु इन कीटनाशकों के प्रयोग से फल व सब्जियां की विषैली होती जा रही हैं, और मनुष्य शरीर पर घातक प्रभाव डाल रही है। जबकि राख डालने से किसी फल या सब्जी के विषैला बनने की संभावना लगभग शून्य ही रहती है। ग्रामीण आंचल में लोग इसलिए स्वस्थ मिलते हैं कि वे शुद्घ फल व सब्जी का प्रयोग करते हैं। 1904 ई. में भारत की उन्नत कृषि  पद्धति का अध्ययन करने के लिए ब्रिटेन से आये कृषि वैज्ञानिक सर एलबर्ट ने बड़ी सूक्ष्मता से अपने विषय का अनुसंधानात्मक अध्ययन किया और अपने निष्कर्षों को ‘एन एग्रीकल्चरल टेस्टामेंट’ में लिखा। उनके लेख के अनुसार पूसा (बिहार) के आसपास के गांवों में उपजने वाली फसलें सभी प्रकार के कीटों से गजब की मुक्त थीं। किसानों की अपनी परंपरागत कृषि पद्घति में कीटनाशक जैसी चीजों के लिए कोई स्थान ही नही था।

भारतीय कृषि पद्घति का ज्ञान तथा उसमें मेरी दक्षता ज्यों-ज्यों बढ़ती गयी, मेरी फसलों में भी रोग त्यों-त्यों कम होते चले गये। कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की उर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी,फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। गौमूत्र और गोबर फसलों के लिए बहुत उपयोगी कीटनाशक सिद्ध हुए हैं। कीटनाशक के रूप में गोबर और गौमूत्र के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान केंद्र खोले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों के बिना खेतिहर उत्पादन बढ़ाने की अपार क्षमता है। इसके बैक्टीरिया अन्य कई जटिल रोगों में भी फायदेमंद होते हैं। गौमूत्र अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है। गाय की बड़ी आँतो में विटामिन बी-१२ की उत्पत्ति प्रचूर मात्रा में होती है पर वहाँ इसका आवशोषण नहीं हो पाता अत: यह विटामिन गोबर के साथ बहार निकल आता है प्राचीनकाल में ऋषि-मूनि गोबर के सेवन से पर्याप्त विटामिन बी -१२ प्राप्त कर स्वास्थ्य लाभ लेते थे । गोबर के सेवन तथा लेपन से अनेक व्याधियाँ समाप्त होती है ।

आग से जल जाने पर गोबर का लेपन रामबाण औषधि है। ताज़ा गोबर का बार-बार लेप करते हुए उसे ठंडे पानी से धोते रहना चाहिए यह व्रणरोपण एंव कीटाणु नाशक है। सर्पदंश, विषधर साँप, बिच्छु या अन्य जीव के काटने पर रोगी को गोबर पिलाने तथा शरीर पर गोबर का लेप करने से विष नष्ट होता है अति विषाक्त्ता की अवस्था में मस्तिष्क तथा हृदय को सुरक्षित रखता है । बिच्छु के काटने पर उस स्थान पर गोबर लगाने से भी उसका जहर उतर जाता है । पञ्चगव्य घृत के सेवन से उन्मादअपस्मार शोथउदररोगबवासीरभगंदरकामलाविषमज्वर तथा गुल्म का निवारण होता है। मनोविकारों को दूर कर पञ्चगव्य घृतस्ननायुतंत्र को परिपुष्ट करता है। अग्निहोत्र जो कि यज्ञ का आधार है पुरातन वैदिक विज्ञान की अनमोल देन है। गोबर से बनी यज्ञ समिधा का गौघृत के साथ उपयोग आदि काल से करते आ रहे है। अग्निहोत्र से कई क्षेत्रों में जैसे कृषिवातावरणजैव प्रजन्न व मनचिकित्सा तथा प्रदुषण दूर करने में विस्मयकारी रूप से लाभ होता है । 

गोबर के कंडों से किये गये अग्निहोत्र से सूक्ष्मऊर्जा, तरगें, एवं पौष्टिक वायु वातावरण में नि:सृत होते है। जिसमें वनस्पतियों को पोषण प्राप्त होकर फसल में वृद्धि होती है। पशुधन के स्वास्थ्य में सुधार तथा दूग्ध की गुणवत्ता में और प्रमाण में वृद्धि होती है। केचुएँ व मधुमक्खियों में भी वृद्धि पायी जाती है। अग्निहोत्र का भस्म एक उत्तम खाद है एवं  कीटनियंत्रक औषध बनाने में भी उपयोगी है। अग्निहोत्र की भस्म से बीज प्रक्रिया एवं बीज संस्कार अंकुरण अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से होता है। छोटे बच्चों को संस्पर्श के रोग से मुक्त करने के लिए गोबर तिलक देने की प्रथा है। भगवान की मूर्ति की प्रतिष्ठा में गोबर के भस्म से मूर्ति का मार्जन किया जाता है तथा उच्छिष्ट स्थान को शुद्ध करने के लिएगोबर का चौका लगाया जाता है। मृतगर्भ ( पेट में मरा हूआ बच्चा ) बाहर निकालने के लिए गोमय (गोबर का रस) ७ तोला,गौदूग्ध में मिलाकर पिलाना चाहिए । बच्चा आराम से बाहर आ जायेगा ।और गोबर को उबालकर लेप करने से गठियारोग दूर होता है । पसीना बंद करने के लिए सुखाये हुए गोबर और नमक के पुराने मिट्टी के बर्तन इन दोनो के चूर्ण का शरीर पर लेप करना चाहिए और गुदाभ्रंश के लिए गोबर गर्म करके सेंक करना चाहिए और खुजली के लिए गोबर शरीर में लगाकर गरम पानी से स्नान करना चाहिए। शीतला माता के फूट निकले छालों पर गाय के गोबर को सुखाकर जलाकर राख को कपडें में छानकर उससे भर दें इस के लिए यही श्रेष्ठ उपाय है।  साधारण व्रण (घाव) के ऊपर घी में राख मिलाकर लेप करना चाहिए । गाय के ताजे गोबर की गन्ध से बूखार एंव मलेरिया रोगाणु का नाश होता है।  दाँत की दुर्गन्ध,जन्तु और मसूडें के दर्द पर गाय के गोबर को जलावें ,जब उसका धुआं निकल जायें तब उसे पानी में डालकर बुझा लें ,सुख जाने पर चूर्ण बनाकर कपडछान कर लें ,इस मंजन से प्रतिदिन दाँत साफ़ करने से दाँत के सब रोग नष्ट हो जाते है । आयुर्वेदानुसार गाय के सूखे गोबर पावडर से धूम्रपान करने से दमे, श्वास के रोगी ठीक होते है ।और हैजा के कीटाणु से बचने के लिए शुद्ध पानी में गोबर घोल कर छानकर पीने से कीटाणुओं से बचाव होता है और हैजा से मुक्त रहते है ।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि गाय ही वह प्राणी है जिसके रहने से भूमि और मनुष्य सहित सभी प्राणी स्वस्थ रह सकते हैं। इसलिए भूमि पर गाय माता को सृष्टि का प्राणतत्व कहकर भी सम्मानित किया गया है।

गाय का पौराणिक महत्व

हिन्दू धर्म के अनुसार गाय माता में ३३ कोटि देवी देवता निवास करते है। कोटि का अर्थ करोड़ नहीं प्रकार होता है। ये देवता १२ आदित्य, ८ वसु, ११ रूद्र और २ आश्विन कुमार है। ऋगवेद ने गाय माता को अघन्या कहा है, यजुर्वेद कहता है कि गौ अनुपमेय है अथर्वेद में गाय को सम्पतियो का घर बताया गया है। स्कन्द पुराण के अनुसार गौ सर्वदेवमयी और वेद सर्वगौमय है।

इसके अतिरिक्त गाय का वर्णन कई जगहों पर मिला है-

भगवान  शिव के प्रिय पुत्र विल्वपत्र की उत्पत्ति गाय के गोबर से बताई गयी है।
भगवान  राम के पूर्वज श्री दिलीप नंदिनी गाय की पूजा करते थे। भगवान भोलेनाथ के वाहन नंदी आंगोल नस्ल के बैल है। जैन आदि तीर्थकर भगवान ऋषभदेव का चिन्ह  बैल है। गरुड़ पुराण में मृत्यु के तुरंत बाद वैतरणी नदी  को आराम से पार करने के लिए गोदान का बहुत महत्व बताया गया है।

श्राद्ध कर्म में भी गाय माता के दूध से बनी खीर का प्रयोग किया  जाता है क्युकि इसी खीर से पितरो को ज्यादा से ज्यादा तृप्ति होती है। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद भगवत गीता में कहा है धेनु नामास्मी कामधेनु अर्थात मै गाय माताओं में कामधेनु हूं। श्रीराम ने वन गमन से पूर्व त्रिजट नमक ब्राह्मण को गाय माता दान की थी। हमारे प्रायश्चित विधान में पञ्चगव्य गोमूत्र, दूग्ध, दही, घी सेवन का बड़ा महत्व बताया गया है। जैसे अग्नि में ईंधन जल जाता है वैसे ही पञ्चगव्य प्राशन से पाप के दूषित संस्कार नष्ट हो जाते है।

 

वेद, पुराणों में गाय

लक्ष्मीश्च गोमय नित्यं पवित्रा सर्वमड्ग
गोमयालेपनं तस्मात् कर्तव्यं पाण्डुनन्दन।।

गाय के गोबर में परम पवित्र सर्वमंगलमयी श्री लक्ष्मी जी नित्यनिवास करती है, इसिलिए गोबर से लेपन करना चाहिए । गोबर गणेश की प्रथम पुजा होती है और वह शुभ होता है । मांगलिक अवसरों पर गाय के गोबर का प्रयोग सर्वविदित है। जलावन एंव जैविक खाद आदि के रूप में गाय के गोबर की श्रेष्ठता जगत प्रसिद्ध है । गोमय गाय के गोबर रस को कहते है ।यह कसैला एंव कड़वा होता है तथा कफजन्य रोगों में प्रभावशाली है । गोबर में बारीक सुती कपड़े को गोबर को दबाकर छोड दे थोड़ी देर बाद इस कपड़े को निचोड़कर गोमय प्राप्त कर सकते है ।इससे अनेक त्वचा रोगों में स्नान करते है ,मुहासे दूर करके चेहरे की कान्ति बनाये रखता है ,गोमय के साथ गेरू तथा मूलतानी मिट्टी व नीम के पत्तों को मिलाकर नहाने का साबुन बनाया जाते है यह चेहरे की झुरियाँ दूर करता है ।

अग्रंमग्रं चरंतीना, औषधिना रसवने।
गोमयालेपनं तस्मात् कर्तव्यं पाण्डुनन्दन।।
यन्मे रोगांश्चशोकांश्च, पांप में हर गोमय।


वन में अनेक औषधि के रस का भक्षण करने वाली गाय
उसका पवित्र और शरीर शोधन करने वाला गोबर। तुम मेरे रोग और मानसिक शोक और ताप का नाश करो।

अपाने सर्वतीर्थानी गोमुत्रे जाहृनवी स्वंय।
अष्टएैश्वर्यमयी लक्ष्मी गोमय वसते सदा।।

गाय के मुख से निकली श्वास सभी तीर्थों के समान पवित्र होती है। तथा गौमूत्र में सदा गंगा जी का वास रहता है। और आठ एैश्वर्यों से सम्पन्न लक्ष्मी गाय के गोबर में वास करती है।

तृणं चरन्ती अमृतं क्षरन्ती

गाय माता घास चरती है और अमृत की वर्षा करती है तथा गाय का गोबर देह पर लगाकर शरीर शुद्ध करते समय हमारे धर्म-कर्म में महत्व अधिक रहता है। इसलिए धर्मशास्त्र में गौ के गोबर को उच्च स्थान प्राप्त है।


 

लेखक: डॉ. मुकेश श्रीवास्तव

पंडित दीनदयाल पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्व विद्यालय एवं गौ अनुसन्धान, मथुरा