गौ आधारित अर्थ व्यवस्था : भारतीय परिपेछ

यह एक निर्विवाद सत्य है की भारत में गाय को कभी भी पशु नहीं माना गया है, अपितु इन्हें ब्रम्हाण्ड की जननी और मनुष्यों की माता माना जाता रहा है। वैदिक काल से ही गाय को आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और औषधीय कारणों से पोषित किया जाता रहा है। आज के आधुनिक युग में स्वदेशी गाय के आर्थिक पछ को मजबूत करना एक बहुत बड़ी चुनौती है। वैज्ञानिक शोधो से यह सिद्ध हो चूका है कि गाय से प्राप्त पांच प्रमुख  पदार्थ दूध, दही, घी, मूत्र और गोबर, जिसे पंचगव्य के नाम से जाना जाता है, से मनुष्यों के प्रमुख तीनो दोषों (वात, पित्त, कफ ) का निराकरण किया जा सकता है।  यद्यपि आधुनिक विज्ञानं ने भी देशी गायो को कई आयामों में विदेशी गायो  से श्रेष्ठ माना है, लेकिन कम दूध उत्पादन के आर्थिक पछ की वजह से यह इतनी निर्बल हो गयी कि अब उसके दर्शन अधिकतर गौशाला में ही हो रहे है। पिछले दो दशक में देशी नस्ल की गायो को एक ओर जहां पशु पालकों और किसानो ने रखना कम कर दिया है, वही दूसरी ओर आम जन मानस में पुनः देशी गाय के लिए वैज्ञानिक महत्वा से कारण जागरूकता बढ़ी है। प्रस्तुत लेख गौ-आधारित अर्थव्यवस्था कार्यशाला, (१९ –अगस्त २०१७), पंडित दिन दयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्वविद्यालय, एवं गो-अनुसंधान संस्थान, मथुरा, उत्तर प्रदेश में लिए गए निर्णयों पर आधारित है।

रणनीति कारक विन्दु

  1. देशी गाय के प्रजनन, पोषण एवं रख रखाव की भू-भौगोलिक परिस्थितियो के अनुसार तकनीकी जानकारी, प्रसार, तथा हिंदी एवं स्थानीय भाषा में साहित्य का सृजन।
  2. देशी नस्ल की गाय के उत्पादों की विशिष्टता अन्य दुधारू पशुओ की तुलना में श्रेष्ट सिद्ध करने वाली जानकारी हिंदी एवं स्थानीय भाषा में प्रचार और प्रसार।  
  3. देशी गाय की गाय के A दूध  व अन्य पशुओ के Aएवं A१ दूध से तुलना हेतु गहन अध्ययन और अनुसन्धान।
  4. देशी नस्ल की गाय के गोबर, गौ मूत्र एवं ढूध पर आधारित कृषि उत्पादों का व्यवसायिक स्तर पर निर्माण एवं विपणन। साथ ही इन उत्पादों के वैकल्पिक उपयोग पर शोध।
  5. पंचगव्य चिकित्सा के लिए देशी गाय से प्राप्त पंचगव्य औषधियो का आयुर्वेदिक औषधियो के रूप में व्यवसायिक उत्पादन, विपणन और वैद्यो एवं आयुर्वेद चिकित्सको द्वारा जन साधारण पर उपयोग एवं प्रमाणीकरण
  6. आधुनिक परिप्रेक्ष्य में कृषि के यांत्रिकीकरण के कारण बैल और बछड़े अनुउपयोगी हो रहे है, अतः बायोटेक टेक्नोलॉजी जैसे सीमेन सेक्सिंग, एम्ब्र्यो ट्रान्सफर टेक्नोलॉजी इत्यादि पर अनुसंधान और प्रयोग पर जोर, जिससे कि देशी गायो को अप ग्रेडेसन हो और उन्हें बचाया जा सके।
  7. मादा गोवंश के प्रजनन के लिए सिर्फ आनुवंशिक गुणवत्ता वाले बछड़ो के अतिरिक्त अन्य का शत प्रतिशत वधियाकरण  के लिए प्रभावी रूप से कार्यवाही।
  8. देशी गायो के गोबर, मूत्र को प्राकतिक खनिज लवणों से युक्त करके नयी किस्म के उर्वरक तैयार करके, उन्हें व्यवसायिक स्तर पर बनाने और विपणन करने की सरल विधि विकसित की जाये।
  9. देशी गायो के गोबर, मूत्र के आधार पर मीथेन एवं बायोगैस उत्पादन की प्रोदौगिकी को सुलभ  प्रोदौगिकी के रूप में विकसित किया जाये।

कार्यान्वयन की रूप रेखा

विचार

  1. देशी नस्ल की गाय की गुणवत्ता के बारे में जागरूकता का हिंदी एवं प्रांतीय भाषा में प्रचार और प्रसार।
  2. देशी नस्ल की गायो की भौगोलिक परिस्थतियो एवं विशिस्ट नस्लों का प्रचार।
  3. देशी नस्ल की गायो के पंचगव्य एवं अन्य उत्पादों की तुलनात्मक विशिस्त्टता के लिए गहन अनुसन्धान।
  4. देशी नस्ल की गायो के पंचगव्य एवं उत्पादों की पौराणिक महत्वा के आधार पर व्यवसायिक उत्पादन।
  5. देशी नस्ल की गायो के व्यवसायिक स्तर पर उत्पादन एवं उत्पादों की मार्केटिंग।
  6. देशी नस्ल की गायो के गोबर, मूत्र की कृषि में उपयोगिता का प्रसार।
  7. देशी नस्ल की गायो के गोबर , मूत्र व अन्य पंचगव्य उत्पादों का जैविक खेती के विशिस्ट संवर्ग एवं गुड एग्रीकल्चर प्रैक्टिस के लिए अनुसंधान एवं नीति निर्धारण।
  8. देशी नस्ल की गायो के दुग्ध उत्पाद में वृद्धि के लिए प्रजनन नीति, कृतिम गर्भाधान नीति, बाझपन निवारण नीति निर्धारण।
  9. देशी नस्ल की गायो के पोषण एवं रख रखाव।
  10. देशी गाय की गाय के A२ दूध व अन्य पशुओ के A२ एवं A१ दूध की तुलनात्मक विशिष्टता हेतु गहन अनुसन्धान।
  11. देशी गाय की गाय के A२ दूध के सन्दर्भ के विपणन नीति एवं प्रथक मूल्य निर्धारण नीति।
  12. देशी गाय से अधिक से अधिक बछिया प्राप्ति के लिए गहन आनुवंशिकी अनुसन्धान।
  13. बायो डायनामिक उर्वरको का निर्माण।
  14. मीथेन फार्मिंग एवं बायोगैस उत्पादन अभियांत्रिकी।
  15. पंचगव्य पौदोग्यकी एवं कुटीर उद्योग सम्बन्धी नीति निर्माण।
  16. देशी नस्ल की गाय के स्वास्थ, पोषण, रख-रखाव के लिए आवश्यक गोचर भूमि एवं सम्बंधित नीति निर्धारण।

कार्य

  1. प्रलेखन, साहित्य सृजन प्रचार सामग्री का निर्माण , मल्टीमीडिया (हिंदी एवं लोक भाषाओ में)
  2. प्रलेखन, साहित्य सृजन प्रचार सामग्री का निर्माण, मल्टीमीडिया (हिंदी एवं लोक भाषाओ में)
  3. अनुसन्धान और अनुसन्धान प्रोदौगकी का प्रसार (हिन्दीऔर लोक भाषाओ में)
  4. व्याहारिक प्रस्ताव एवं व्याहारिक नीति का सरलीकरण
  5. व्याहारिक प्रस्ताव एवं व्याहारिक नीति का सरलीकरण
  6. प्रचार सामग्री का निर्माण, मल्टीमीडिया कृषको की गोपालन की सफल गाथाये (हिंदी एवं लोक भाषाओ में )
  7. नीतिगत प्रस्ताव और सरलीकृत प्रक्रिया का विकास
  8. प्रजनन नीति के लिए सुझाव एवं पुर्नवीछा
  9. भौगोलिक परिस्थतियो के अनुसार हिंदी एवं लोक भाषाओ में प्रचार सामग्री का निर्माण
  10. प्रयोगशाला अनुसन्धान
  11. व्यासायिक नीति का सरलीकरण प्रस्ताव
  12. प्रयोगशाला अनुसन्धान
  13. व्यावसायिक उत्पादन एवं कृषि में उपयोग
  14. व्यावसायिक प्रस्ताव
  15. नीतिगत प्रस्ताव
  16. वर्तमान नीति की समीछा

माध्यम

  1. भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्, पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्व विद्यालय, किशी विज्ञानं केंद्र, प्रसार विभाग,पशु पालन विभाग, गौ सेवा आयोग, स्वयं सेवी संस्थाए
  2. भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्, पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्व विद्यालय, किशी विज्ञानं केंद्र, प्रसार विभाग,पशु पालन विभाग, गौ सेवा आयोग, स्वयं सेवी संस्थाए
  3. भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्, पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्व विद्यालय, कृषि विज्ञानं केंद्र, प्रसार विभाग,पशु पालन विभाग, गौ सेवा आयोग, स्वयं सेवी संस्थाए
  4. किसान, वैज्ञानिक, कॉर्पोरेट सेक्टर, राज्य एवं केंद्र सरकार, आयुष विभाग, गौ सेवा आयोग
  5. भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद, पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्व विद्यालय, कृषि विज्ञानं केंद्र, प्रसार विभाग,पशु पालन विभाग, गौ सेवा आयोग, स्वयं सेवी संस्थाए
  6. भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद, पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्व विद्यालय, कृषि विज्ञानं केंद्र, प्रसार विभाग,पशु पालन विभाग, गौ सेवा आयोग, स्वयं सेवी संस्थाए
  7. भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्, पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्व विद्यालय, किशी विज्ञानं केंद्र, प्रसार विभाग,पशु पालन विभाग, पशु धन विकास परिषद, राज्य जैव उर्जा विकास गौ सेवा आयोग, गोशालाए ,स्वयं सेवी संस्थाए
  8. भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद, पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्व विद्यालय, कृषि विज्ञानं केंद्र, प्रसार विभाग,पशु पालन विभाग, पशु धन विकास परिषद, राज्य जैव उर्जा विकास गौ सेवा आयोग, गोशालाए, स्वयं सेवी संस्थाए
  9. भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद, पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्व विद्यालय, कृषि विज्ञानं केंद्र, प्रसार विभाग,पशु पालन विभाग, पशु धन विकास परिषद, राज्य जैव उर्जा विकास गौ सेवा आयोग, गोशालाए,स्वयं सेवी संस्थाए
  10. भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद, पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्व विद्यालय, आयुष विभाग , भारतीय पौदोग्की संसथान, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसन्धान संसथान, बायो टेक्नोलॉजी विभाग, गौ सेवा आयोग
  11. व्यवसायी, व्यवसाय विशेषज्ञ , नेशनल डेरी डेवलपमेंट बोर्ड, पशु पालन विभाग, कॉर्पोरेट सेक्टर, गोशालाए
  12. भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद, पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्व विद्यालय, गौ सेवा आयोग और गोशालाए
  13. भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद, पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्व विद्यालय, भारतीय पौदोग्की संसथान, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसन्धान संस्थान, बायो टेक्नोलॉजी विभाग, गौ सेवा आयोग
  14. राज्य जैव उर्जा विकास बोर्ड, भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद, पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्व विद्यालय, भारतीय पौदोग्की संस्थान, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसन्धान संस्थान, बायो टेक्नोलॉजी विभाग एवं अभियांत्रिकी संसथान
  15. वैज्ञानिक, व्यापारी, राज्य और केंद्र सरकार, आयुष विभाग, कुटीर य्द्योग विभाग
  16. भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्, पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्व विद्यालय,कृषि विज्ञानं केंद्र, पशु पालन विभाग, पशुधन विकास परिषद, गौ सेवा आयोग और स्वयं सेवी संस्थाए


लेखक: डॉ. मुकेश श्रीवास्तव

पंडित दीनदयाल पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्व विद्यालय एवं गौ अनुसन्धान, मथुरा