जीवामृत एवं नीमास्त्र बनाने की विधि एवं उपयोग

जीवामृत एवं नीमास्त्र बनाने की विधि एवं उपयोग:-

बढ़ती महंगाई से खेती-किसानी में फसल की लागत दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। जिससे किसान परेशान होकर खेती से दूर भागता जा रहा है। लेकिन वहीं कुछ सफल किसान हैं जो कुछ देसी तरीकों से बाजार की लागत लगातर कम कर रहे हैं। वो किसान जो जैविक खेती करते हैं या जीरो बजट प्राकृतिक खेती करते हैं। ये किसान घर पर ही देसी तरीकों से खाद और कीटनाशक दवाइयां तैयार कर लेते हैं जिसमें नाम मात्र की लागत आती है। इन तरीकों को अपनाकर ये किसान न सिर्फ शुद्ध अनाज का उत्पादन कर रहे हैं बल्कि अपनी खेती की लागत आधे तक कम कर रहे हैं। इससे इनकी मिट्टी उपजाऊ हो रही है और इनका खानपान बेहतर हो रहा है।

वर्तमान में खेती:-

वर्तमान में खेती मुख्यतः विदेशों से आयातित कृषि रसायनों पर आधारित है। परिणामत: खेती निरंतर महंगी, विषाक्त तथा जल एवं वातावरण प्रदूषण की समस्या बहुत अधिक होती जा रही है। कृषि रसायन के अंधाधुंध उपयोग के कारण भूमि में जीवांश (जैविक कार्बन) की कमी होती जा रही है। देश में कई सारे भूभाग में जैविक कार्बन की मात्रा 0.5 प्रतिशत से कम तथा कई स्थानों पर 0.2 प्रतिशत से भी कम हो गई है। ऐसी अवस्था में भूमि की उत्पादन क्षमता दिनों दिन कम होती जा रही है। परिणामतः बहुत सारे नवयुवक शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं।

पौधों का आहार भूमि जीवांश (ह्यूमस) जो जैव तथा पशुजनित अवशेष के विघटन से बनता है। जीवांश भूमि में विद्यमान पोषक तत्वों तथा जल, पौधों के आवश्यकतानुसार उपलब्ध कराने में सहायक होते हैं। साथ ही इनके प्रयोग से उगाई गई फसलों पर बीमारियों एवं कीटों का प्रकोप बहुत कम होता है। जिससे हानिकारक रसायन, कीटनाशकों के छिड़काव की आवश्यकता नहीं रह जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि फसलों से प्राप्त खाद्यान्न, फल एवं सब्जी आदि हानिकारक रसायनों से पूर्णताः मुक्त होते हैं। तथा इसके प्रयोग से उत्पादित खाद्य-पदार्थ अधिक स्वादिस्ट एवं पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं।

जीवामृत:-

जीवामृत एक अत्यधिक प्रभावशाली जैविक खाद है, जो पौधों की वृद्धि और विकास में सहायता करता है तथा पौधों की प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाता है जिससे पौधे स्वस्थ बने रहते हैं तथा फसल से अच्छी पैदावार मिलती है। जीवामृत में लाभदायक सूक्ष्मजीव (एजोस्पाइरिंलम, पी.एस.एम. स्यूडोमोनास, ट्राइकोडर्मा ,यीस्ट एवं मोल्ड) बहुतायत में पाये जाते हैं। इसके उपयोग से भूमि में विद्यमान लाभदायक जीवाणु तथा केंचुए भी आकर्षित होते हैं। ये कार्बनिक अवशेषों के सड़ाव में सहायता करते हैं। परिणामतः मुख्य सूक्ष्म पोषक तत्वों, एंजाइम्स एवं हारमोन को संतुलित मात्रा में पौधों को उपलब्ध कराते हैं।

जिवामृत दो रूपों में बनाया जाता है-

  1. तरल जीवामृत
  2. घन जीवामृत
तरल जिवामृत:-

 

तरल जीवामृत निम्नलिखित सामाग्री से बनाया जाता है-
  1. गोबर – 10 किलोग्राम,
  2. देसी गाय का मूत्र – 5 से 10 लीटर,
  3. एक किलो पुराना गुड़ या 4 लीटर गन्ने का रस (नया गुड़ भी ले सकते हैं)
  4. एक किलो दाल का आटा (मूंग, उर्द, अरहर, चना आदि का आटा)
  5. 1 किलो सजीव मिट्टी (बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी या ऐसे खेत या बांध की 1 से 2 इंच मिट्टी जिसमें कीटनाशक न डाले गए हों )
  6. 200 लीटर पानी
  7. पात्र – प्लास्टिक ड्रम/सीमेंट की हौदी
बनाने की विधि:-

सर्वप्रथम उपलब्ध प्लास्टिक ड्रम अथवा मिट्टी या सीमेंट की हौदी में 50-60 लीटर पानी लेकर 10 किग्रा गोबर को लकड़ी से अच्छी तरह मिलायेें। तत्पश्चात उपलब्धतानुसार 5-10 लीटर गोमूत्र मिलाया जाये। मिश्रण में 01 किलोग्राम उर्वर मिट्टी जिसमें रसायन खादों का प्रयोग न किया गया हो, मिला दी जायें। पात्र में उपलब्ध जीवाणुओं के भोजन हेतु एक किग्रा बेसन, एक किग्रा गुड़ अथवा 4 लीटर गन्ने के रस के घोल में और अतिरिक्त पानी मिलाकर 200 लीटर तैयार किया जाये। प्लास्टिक की टंकी में डालकर अच्छी तरह मिश्रण करें

नाइलॉन जाली या कपड़े से पात्र के मुंह को ढक दें। अब इस मिश्रण को 3 दिन तक किण्वन क्रिया के लिये छावं में रखें तथा दिन में 3 बार (सुबह, दोपहर व शाम) लकड़ी से मिलाया जाय। 3 दिन के बाद जीवामृत उपयोग के लिए बनकर तैयार हो जायेगा | यह मात्रा एक एकड़ भूमि के लिये पर्याप्त है | तैयार जीवामृत को 5-6 दिन के अन्दर प्रयोग कर लिया जाये।

प्रयोग विधि:-

तरल जीवामृत को कई प्रकार से अपने खेतों मे प्रयोग कर सकते है। इसके लिए सबसे अच्छा तरीका है, फसल में पानी के साथ जीवामृत देना। जिस खेत में आप सिंचाई कर रहे हैं, उस खेत के लिए पानी ले जाने वाली नाली के ऊपर ड्रम को रखकर वाल्व की सहायता से जीवामृत पानी मेजीवामृत डाले धार इतनी रखें कि खेत में पानी लगने के साथ ही ड्रम खाली हो जाए।

जीवामृत पानी में मिलकर अपने आप फसलों की जड़ों तक पहुँच जाएगा। इस प्रकार जीवामृत 21 दिनों के अंतराल पर आप फसलो को दे सकते है। इसके अतिरिक्त खेत की जुताई के समय भी जीवामृत को मिट्टी पर भी छिड़का जा सकता है। इस तरल जीवामृत का फसलो पर छिड़काव भी किया जा सकता है।

फलदार पेड़ो के लिए दोपहर (12pm) के समय पेड़ो की जो छाया पड़ती है उस छाया के बाहर की कक्षा के पास चारों तरफ 25-50 सेमी नाली बनाकर प्रति पेड़ 2 से 5 लीटर जीवामृत महीने में दो बार पानी के साथ छिड़काव करें। जीवामृत छिड़कते समय भूमि में नमी होनी चाहिए।

घन जिवामृत:-

घन-जिवामृत निम्नलिखित सामिग्री से बनाया जाता है-

  1. 100 किलोग्राम देशी गाय का गोबर
  2. 5 लीटर देशी गौमूत्र
  3. 2 किलोग्राम देशी गुड़
  4. 1 किलोग्राम दाल का आटा
  5. 1 किलोग्राम सजीव मिट्टी
बनाने की विधि:-

सबसे पहले 100 किलोग्राम देशी गाय का गोबर लें और उसमें 2 किलोग्राम देशी गुड़, 2 किलोग्राम दाल का आटा और 1 किलोग्राम सजीव मिट्टी डालकर अच्छी तरह मिश्रण बना लें। इस मिश्रण में थोड़ा-थोड़ा गौमूत्र डालकर उसे अच्छी तरह मिलाकर गूंथ लें ताकि उसका घन जीवामृत बन जाये।
अब इस गीले घन जीवामृत को छाँव में अच्छी तरह फैलाकर सुखा लें। सूखने के बाद इसको लकड़ी से ठोक कर बारीक़ कर लें तथा इसे बोरों में भरकर छाँव में रख दें। यह घन जीवामृत आप 6 महीने तक भंडारण करके रख सकते हैं।

प्रयोग विधि:-

खेत की जुताई के बाद इसका प्रयोग सबसे अच्छा होता है, जब भूमि में इसे डालते हैं तो नमी मिलते ही घन जीवामृत में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु, कोष तोड़कर समाधि भंग करके पुन: अपने कार्य में लग जाते हैं। किसी भी फसल की बुवाई के समय प्रति एकड़ 100 किलोग्राम जैविक खाद और 20 किलोग्राम घन जीवामृत को बीज के साथ बोयें। इससे बहुत ही अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं।
जीवामृत का प्रयोग गेहूँ, मक्का, बाजरा, धान, मूंग, उर्द, कपास, सरसों, मिर्च, टमाटर, बैंगन, प्याज, मूली, गाजर आदि फसलों में तथा अन्य सभी प्रकार के फल पेड़ों में किया जा सकता है।

जीवामृत के प्रयोग से होने वाले लाभ:-
  1. जीवा-मृत पौधे को अधिक ठंड और अधिक गर्मी से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है।
  2. फसलो पर इसके प्रयोग से फूलों और फलों में वृद्धि होती है।
  3. जीवामृत सभी प्रकार की फसलों के लिए लाभकरी है।
  4. इसमें कोई भी नुकसान देने वाला तत्व या जीवाणु नही है।
  5. जीवामृत के प्रयोग से उगे फल,सब्जी, अनाज देखने में सुंदर और खाने में अधिक स्वादिष्ट होते है।
  6. जीवामृत पौधों में बिमारियों के प्रति लड़ने की शक्ति को बढ़ाता है।
  7. मिट्टी में से तत्वों को लेने और उपयोग करने की क्षमता बढ़ती है।
  8. बीज कीअंकुरण क्षमता में वृद्धि होती है।
  9. इससे फसलों और फलों में एकसारता आती है तथा पैदावार में भी वृद्धि होती है।
नीमास्त्र:-

यह नीम से बनाये जाने वाला बहुत ही प्रभावी जैविक कीट नाशक है, जो कि रसचूसक कीट एवं इल्ली इत्यादि कीटो को नियंत्रित करने के लिए उपयोग में लाया जाता है।

सामग्री:-
  1. 05- किलोग्राम नीम या टहनियां
  2. 5 किलोग्राम नीम फल/नीम खरी
  3. 5 लीटर गोमूत्र
  4. 1 किलोग्राम गाय का गोबर
नीमास्त्र बनाने की विधि:-

सर्वप्रथम प्लास्टिक के बर्तन पर 5 किलोग्राम नीम की पत्तियों की चटनी, और 5 किलोग्राम नीम के फल पीस व कूट कर डालें एवं 5 लीटर गो-मूत्र व 1 किलोग्राम गाय का गोबर डालें इन सभी सामग्री को डंडे से चलाकर जालीदार कपड़े से ढक दें।

यह 48 घंटे में तैयार हो जाएगा। 48 घंटे में चार बार डंडे से चलाएं। इस घोल को 100 लीटर पानी में मिला कर इसे कीटनाशक के रूप में उपयोग कर सकते है।

लाभ:-

नीमास्त्र एक सर्वोत्तम कीटनाशक है, इसके लाभ निम्नलिखित है –

  1. मनुष्य, वातावरण और फसलों के लिए शून्य हानिकारक है।
  2. इसका जैविकीय विघटन होने के कारण भूमि की संरचना में सुधार होता है।
  3. सिर्फ हानिकारक कीटो को मरता है, लाभदायक कीटो को हानि नहीं पहुँचता।
  4. किसानो के लिए यह एक अच्छा और सस्ता उपाय है।
एक देसी गाय का खेती में महत्व:-

अगर किसान एक देसी गाय का पालन करता है तो उसे पूरे साल बाजार से खाद खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। देसी गाय के एक ग्राम गोबर में 300-500 करोड़ सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं। जो खेत की मिट्टी के लिए बहुत जरूरी है। एक गाय के गोबर और गोमूत्र से कई खादें और कीटनाशक बनाकर 30 एकड़ खेती आसानी से की जा सकती है।

केंचुओं का खेती में उपयोग:-

केंचुए दिन रात हमारे खेतों में करोड़ों छेद करके भूमि के नीचे के पोषक तत्वों को पौधे की जड़ तक लाकर भूमि को उपजाऊ और मिट्टी को मुलायम बनाते हैं। इन छेदों में बारिश का पानी इकट्ठा होता है और हवा का संचार होता है।

रासायनिक खाद और जहरीले कीटनाशक के अंधाधुंध उपयोग से ये केंचुए खेत से समाप्त हो गये हैं। इन केंचुओं को वापस लाने के लिए किसान को अपने खेत में जैविक खाद डालनी होगी, जिससे केंचुआ वापस आ सकें और मिट्टी को उपजाऊ बना सकें।

देसी तरीके से ऐसे करें बीज शोधन:-

अगर किसान बीज बुवाई से पहले बीज शोधन कर लें तो उनकी फसल में कीट-पतंग नहीं लगते और बीज का जमाव सौ प्रतिशत होता है। पांच किलो देसी गाय का गोबर, पांच लीटर गोमूत्र, 50 ग्राम बुझा हुआ चूना, एक मुट्ठी खेत की मिट्टी इन सभी चीजों को 20 लीटर पानी में मिलकर 24 घंटे मिलकर रख दें।

इस घोल को दिन में दो बार लकड़ी से चला दें। इसे बीजामृत कहते हैं, ये बीजामृत 100 किलो बीज के उपचार के लिए पर्याप्त है। बीज को इसमें भिगोकर छांव में सुखाएं इसके बाद बुवाई करें। बीज शोधन के लिए जरूरी है बीज देसी और अच्छी गुणवत्ता वाला हो।

पंचगव्य के उपयोग से खेत में नहीं लगेंगे कीट-पतंग:-

पांच किलो गोबर, 500 ग्राम देसी घी को मिलाकर मटके में भरकर कपड़े से ढक दें। इसे सुबह-शाम चार दिन लगातार हिलाना है। जब गोबर में घी की खुशबू आने लगे तो तीन लीटर गोमूत्र, दो लीटर गाय का दूध, दो लीटर दही, तीन लीटर गुड़ का पानी, 12 पके हुए केले पीसकर सभी को आपस में मिला दें।

इस मिश्रण को 15 दिन तक 10 मिनट तक रोज हिलाएं। एक लीटर पंचगव्य के साथ 50 लीटर पानी मिलाकर एक एकड़ खेत में उपयोग करें। यह मिश्रण छह महीने तक खराब नहीं होगा। इसके उपयोग से फसल की उपज और गुणवत्ता बढ़ती है, कीट-पतंग का खतरा कम रहता है।

DR. RAJESH KUMAR SINGH

Jamshedpur, Jharkhand, India
rajeshsinghvet@gmail.com
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